कलियुग के मनुष्य (story)


Dear Readers , आज मैंने एक कहानी पढ़ी , जिसे मैं अपने इस ब्लाॅग पर Share  कर रही हूँ  .  यह कहानी है- महाभारत काल की ।
एक बार पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण जी से पूछा - हे ! प्रभु हम जानना चाहते हैं कि , कलियुग में मनुष्य कैसे होंगे ? उनका आचरण तथा आचार-व्यवहार कैसा होगा ?
तब भगवानजी बोले ," आज आप लोग वन की ओर भ्रमण करने जाइए , सभी अलग-अलग दिशा में जाना तथा जो भी दृश्य आप लोग देखेंगे उसी में इस प्रश्न का ऊत्तर छिपा होगा । "
पाँचों पांडव भाईयों ने वैसा ही किया , वे सभी अलग-अलग दिशा गये तथा अलग-अलग दृश्य देखे।
युधिष्ठिर ने देखा-  एक हाथी जिसकी दो सूँड़ थी ।
भीम ने देखा - एक पक्षी जिसके पंखों पर वेदमंत्र लिखे हुए थे किन्तु वह मांस खा रहा था ।
अर्जुन ने देखा - एक गाय अपने बछड़े को इतना चाट रही थी कि वह चोटिल होकर लहुलुहान हो रहा था ।
नकुल ने देखा -  एक स्थान पर सात कुँए थे , उनमे से बीच का कुआँ खाली था लेकिन आस-पास के सारे कुएँ भरे हुए थे ।
सहदेव ने तो और भी आश्चर्य जनक दृश्य देखा - एक बड़ी सी शिला (पत्थर) लुढ़कते हुए कई सारी चीजों को नष्ट कर रही है लेकिन एक छोटे से पौधे से टकराकर रूक जाती है ।
शाम को जब पांडव वापस घर आये ; तो उन्होंने भगवान कृष्ण जी को अपने-अपने अनुभव बताए तथा उन दृश्यों का अर्थ
पूछा , वे दृश्य कलियुग से कैसे संबंधित हैं यह भी बताने की प्रार्थना की ।
भगवान जी उन सभी को समझाते हैं -
युधिष्ठरजी ने दो सूँड़ वाला हाथी देखा यह दर्शाता है कि कलियुग में मनुष्य दो प्रकार की प्रकृति रखेगा , एक तरफ वह बोलेगा कुछ और लेकिन दूसरी तरफ करेगा कुछ और ही

भीम ने ऐसा पक्षी देखा जिसके पंखों पर वेदमंत्र लिखें हैं लेकिन वह मांस खाता है इसका अर्थ है कि कलियुग में ऐसे कई लोग होंगे जो स्वयं बहुत ज्ञानी तथा विद्वान होने का दावा करेंगे परंतु ये सब वे धन-संपत्ति की  लालच में करेंगे उनकी मंशा यही होगी कि कोई मर जाए और संपत्ति उनके नाम हो जाए ।
अर्जुन द्वारा देखे हुए दृश्य का मतलब है कि कलियुग में माता-पिता अपने बच्चों को इतना लाड़-प्यार करेंगे कि उन्हें अपने विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा ।
नकुल ने देखा कि कई भरे हुए कुओं के बीच एक कुआँ खाली भी है अर्थात कलियुग में जिन व्यक्तियों के पास पर्याप्त धन होगा वे बड़े-बड़े उत्सवों तथा आयोजनों में लोगों को खूब खिलाएँगे तथा इस प्रकार से बहुत अन्नादि चीजों को व्यर्थ कर देंगे  किन्तु वहीं यदि उनके आस-पास कोई भूखे-गरीब मनुष्य हों तो उन पर ध्यान ही नहीं देंगे , ये सब वे दिखावे के लिए करेंगे ।
सहदेव द्वारा देखे हुए अद्भुत दृश्य पर वे कहते हैं कि " बड़ी सी लुढ़कती हुई शिला ; मनुष्यों के गिरते हुए नैतिक स्तर का प्रतीक है . मन लगातार पतन की ओर ही जाता है लेकिन एक छोटे से पौधे अर्थात् भगवन्नाम लेने से उसका पतन रूक जाता है ।"
कलियुग में केवल भगवान का नाम लेने वाला , उनकी भक्ति करने वाला व्यक्ति ही मन को विकारों में गिरने से बचा सकता है और सच्ची सुख-शांति पा सकता है ।
यह कथा हमें अवश्य ही कुछ सोचने पर मजबूर करती है । सच ही कहा गया है - कलियुग केवल नाम आधारा ।।
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