क्यों न करें किसी की बुराई

जी हाँ ! आज हम जानेंगे कि किसी की भी निंदा, बुराई या चुगली क्यों नहीं करना चाहिए ; लेकिन इससे पहले सवाल ये है कि ' आप ऐसा करते भी हैं या नहीं ' ?
हममें से ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि नहीं मैं ऐसा नहीं करता या मैं इस तरह का इंसान नहीं हूँ ...
ठीक है , वो लोग जो दूसरों की बुराइयों का हिसाब लेकर चलते हैं और सदा दूसरों को दोष देते रहते हैं उन्हें तो छोड़ ही दीजिए ।
पर, मैं यहाँ उन भले लोगों की बात कर रही हूँ जिन्हें ये निंदक लोग लपेटे में ले लेते हैं ।
कैसे - देखिए यदि किसी निंदक ने बातों ही बातों में आपसे ' अ ' की बुराई चालू कर दी और ऐसे-ऐसे तर्क दिए कि आपने उनमें से एकाध से भी सहमत होकर हामी भर दी...तो बस यहाँ आप फंस गए ; अब वो निंदक जाकर ' अ ' से कहेगा कि ये सब बातें आपने उनसे कही और आप बन गए बुरे !!!
अपनी लाइफ का भी एक उदाहरण देती हूँ -
' मैं एक बार एक शादी में गई थी वहाँ दुल्हन की तुलना में दूल्हा अधिक उम्र वाला और रंगत में भी काला था । क्योंकि यहाँ भारत में खासकर अरेंज्ड मैरिज में यह कोई नई बात नहीं है अतः हममें से किसी को यह कुछ विशेष बात नहीं लगी ।
अब निंदकों के लिए तो यह एक विशेष टाॅपिक हो गया ;
इसी प्रकृति की एक महिला मेरे पास आईं और कहने लगीं कि ' दूल्हा कितना बदसूरत है, लड़की की तो लाइफ खराब हो गई ', मैंने कुछ नहीं कहा ।
उन्होंने फिर कहा , ' लड़का काला है न ! ' मैं केवल मुस्कुराई । शायद उन्हें संतुष्टि नहीं हुई वो मेरा जवाब चाहती थीं ।
उन्होंने मेरा नाम लेकर मुझसे फिर पूछा , ' लड़का काला है या नहीं ? '
अंततः मैंने सच कह दिया -' हाँ ! काला है ।'
और मैं फँस गई , उन्होंने मेरे सामने तुरंत ही सबसे कहना शुरू कर दिया कि मैं कह रही हूँ कि दूल्हा काला है और लड़की के लिए उपयुक्त नहीं है ।
ये बात शायद दूल्हे तक भी पहुँची और दुल्हन जो रिश्ते में मेरी दीदी लगती थीं उन तक भी ।
इसलिए, अब मैंने ऐसे निंदकों से सावधान रहना शुरू कर दिया है जो अपने शब्द दूसरों के मुँह से निकलवाते हैं और आपको को भी सावधान कर रही हूँ :
» निंदा क्यों न करें »
(1) निंदा न करने के लिए , हम निंदा क्यों करते हैं ये जानना जरूरी है :
दरअसल, जब हम किसी से नाराज होते हैं या किसीकी कोई आदत हमें अच्छी नहीं लगती तो हम उसकी आलोचना करते हैं । इससे हम किसी व्यक्ति के प्रति अपना दृष्टिकोण नहीं बल्कि पूर्वाग्रहयुक्त असंतोष दर्शाते हैं ।
अब, यहाँ यह समझना होगा कि हर व्यक्ति का स्वभाव अलग होता है , आप किसीके एक रूप से संतुष्ट हो सकते हैं तो दूसरे रूप से असंतुष्ट । हर व्यक्ति न तो पूर्ण रूप से अच्छा होता है न पूर्ण रूप से बुरा । यदि हम किसी की अच्छी आदतों को पसंद करते हैं तो हमें उनकी बुरी आदतों को भी स्वीकार करना चाहिए ।
यदि हम खुद को देखें तो हमारे अंदर भी बहुत-सी अच्छाईयाँ हैं तो बुराइयाँ भी हैं ।
(2) किसी की बुराई करने से हमारी छवि भी खराब होती है ।
(3) हमारी एनर्जी और टाइम भी वेस्ट होता है ।
(4) हमारा मन द्वेषभाव से भर जाता है ।
(5) यदि उस व्यक्ति से हमारी शिकायतें दूर हो जाती हैं तो बाद में पछतावा भी होता है ।
(6) जिससे हम किसीकी बुराई करते हैं वह उस व्यक्ति के बारे में अपने मन में पूर्वाग्रह बना लेता है ।
(7) निंदा का दुर्गुण और निंदक की उपाधि मिलती है ।
« कैसे रहें निंदकों से सावधान »
(1) किसी को कहने मौका मत दें ।
(2) लोगों की परवाह न करें ; कुछ लोग हर बात में आपको ही दोषी ठहरा सकते हैं ।
(3) किसी से कुछ भी बोलने से पहले सोच-समझ लें, लोग आपकी सामान्य बातचीत में भी विशेष मतलब निकाल सकते हैं ।
(4) कम से कम बोलें और ऐसे लोगों से जो निंदक हैं/व्यर्थ चर्चा करते हैं , आवश्यक बातचीत ही रखें ।
(5) किसी के सवालों का ऐसी चतुराई से जवाब दें कि बात भी बन जाए और कोई अन्यथा भी न ले ।
(6) अपनी बातों को सार्थक बनाएँ , सही दिशा में बातचीत को ले जाने की कोशिश करें ।
(7) जो बात आप गुपचुप तरीके से कहेंगे उसमें जरूर कोई न कोई खोट होगी इसलिए हर बात पूरी सत्यता और आत्मविश्वास से सबके सामने रखें ।
(8) और सबसे बढ़िया उपाय है - ' बेकार के लोगों और बेकार की बातों को अनसुना कर दें ' ।
अंततः कोई आपको कंट्रोल न कर सके , कोई आपको डिस्टर्ब न करे, कोई आपकी मानसिक शांति भंग न करे , यह बात आपको ही सुनिश्चित करनी होगी । 
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