" हे ! ईश्वर चाहे जो कुछ भी हो जाए पर मेरे मन की शांति कभी भंग न हो ", संत विनोबा भावे जी की पुस्तक ' स्थितप्रज्ञ दर्शन ' में लिखी यह बात लगातार मुझे प्रेरणा देती रहती है । वे कहते हैं , " जीवन में कोई भी घटना हो , सुखद या दुखद , एक क्षण के लिए बिल्कुल शांत, स्थिर और अविचलित रहें फिर धैर्यपूर्वक प्रतिक्रिया दें ।"
अब आप ही विचार कीजिए ! दुनिया में सबसे बड़ा सुख क्या होता है ? जिसे पाने की इच्छा हम करते हैं ।
एवं सबसे बड़ा दुख क्या हो सकता है ? जिसे हममें से कोई नहीं पाना चाहता ?
...
आप देखेंगे इन दोनों प्रश्नों का कोई एक जवाब देना मुश्किल है क्योंकि दोनों के जवाब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं ; जैसे सुख, घर, पैसे, गाड़ी, प्रसिद्धि आदि में तथा दुख असफलता, गरीबी, अपमान आदि में माना जाता है ।
पर किस हद तक ?
कोई ये सारे सुख के साधन पा कर भी सुखी नहीं है तो कोई ये सारे दुख पाकर भी दुखी नहीं है !
क्योंकि सुख या दुख हमारे मानने पर ही निर्भर करता है ।
सुख या दुख हमारी ' आत्मसंतुष्टि ' पर निर्भर करता है ।
यह हमारा निर्णय होता है कि हम किसी परिस्थिति में खुश रहें या उदास ।
अब आप ही विचार कीजिए ! दुनिया में सबसे बड़ा सुख क्या होता है ? जिसे पाने की इच्छा हम करते हैं ।
एवं सबसे बड़ा दुख क्या हो सकता है ? जिसे हममें से कोई नहीं पाना चाहता ?
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आप देखेंगे इन दोनों प्रश्नों का कोई एक जवाब देना मुश्किल है क्योंकि दोनों के जवाब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं ; जैसे सुख, घर, पैसे, गाड़ी, प्रसिद्धि आदि में तथा दुख असफलता, गरीबी, अपमान आदि में माना जाता है ।
पर किस हद तक ?
कोई ये सारे सुख के साधन पा कर भी सुखी नहीं है तो कोई ये सारे दुख पाकर भी दुखी नहीं है !
क्योंकि सुख या दुख हमारे मानने पर ही निर्भर करता है ।
सुख या दुख हमारी ' आत्मसंतुष्टि ' पर निर्भर करता है ।
यह हमारा निर्णय होता है कि हम किसी परिस्थिति में खुश रहें या उदास ।
मेरे कहने का मतलब है कि " हर हाल में खुश रहना या कह लीजिए हर परिस्थति में खुशी ढूढ़ लेना हमारे ऊपर है ।"
हांलाकि यह कठिन काम है पर असंभव भी नहीं । बस आपको हर चीज के पीछे छुपे positive reason को खोजना होगा और अपने आपसे positive talk करनी होगी ।
देखिए ' स्थितप्रज्ञ दर्शन ' में ऐसा आता है :
जब तुकाराम जी की पत्नी मर गईं तो उन्होंने सोचा चलो अच्छा हुआ उसकी मुक्ति हुई अब मैं भी अच्छे से भजन-भक्ति कर सकूँगा ।
इसे कहते हैं :
हर हाल में संतुष्ट रहना !
हरदम खुश रहना !
देखिए ' स्थितप्रज्ञ दर्शन ' में ऐसा आता है :
जब तुकाराम जी की पत्नी मर गईं तो उन्होंने सोचा चलो अच्छा हुआ उसकी मुक्ति हुई अब मैं भी अच्छे से भजन-भक्ति कर सकूँगा ।
इसे कहते हैं :
हर हाल में संतुष्ट रहना !
हरदम खुश रहना !
देखिए, ऐसा कहना थोड़ा अच्छा नहीं लगता पर जब आपके दुखी होने से कुछ ठीक नहीं होने वाला तो क्यों दुखी होकर जीना ?
और यदि आप वाकई कुछ ठीक करना चाहते हैं तो उसके लिए कोई एक्शन लीजिए ।
जैसे, यदि कोई गरीब है तो उसके लिए दो ही रास्ते हैं या तो वो अमीर बनने की कोशिश करे या फिर गरीबी में ही जीना सीख ले क्योंकि बिना कोई प्रयत्न किए कुछ भी नहीं मिलता ।
इस विषय पर आपके क्या विचार हैं , कमेंट के माध्यम से हमें बताइए ।
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