एक भी आँसू न कर बेकार-हिन्दी कविता

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एक भी आँसू न कर बेकार ,
जाने कब समंदर माँगने आ जाए !

पास प्यासे के कुँआ आता नहीं है ,
यह कहावत है अमरवाणी नहीं है ,
और जिसके पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है ।

कर स्वयं हर गीत का श्रंगार ,
जाने देवता को कौन सा भा जाय !

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण ,
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्याएँ कभी रूठी नहीं हैं ।

हर छलकते अश्रु को कर प्यार,
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय !

व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में ,
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर में ,

हर लहर का कर प्रणय स्वीकार ,
जाने कौन तट के पास पहुँच जाय !

             कवि - रामावतार त्यागी

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