सच्ची बुद्धिमत्ता -
( True wisdom - A story in hindi by W.M.Ryburn
हम सभी के पास ताकत , समय और बुद्धि है , जब हम विद्यालय छोड़कर संसार में प्रवेश करते हैं , तो हमारी परीक्षा होती है कि हम इन बुद्धिमत्ताओं का जो हमारे पास हैं , किस प्रकार उपयोग करते हैं । यदि हम अच्छे नागरिक बनने जा रहे हैं तो हम अपनी शक्ति और योग्यताओं का उपयोग देश के कोने-कोने में उजाला फैलाने के लिए करेंगे , अर्थात हम अपने आपको देश की सेवा में लगा देंगे .
हम सभी एक बड़े घर में रहते हैं जिसे हम अपना मूल निवास स्थान यानि देश कहते हैं , हममें से प्रत्येक व्यक्ति को कुछ धन दिया जाता है , किसी को एक , किसी को दो , किसी को तीन रूपए - ये जिससे हम चीजें खरीद सकते हैं , रूपए न होकर हमारी शक्तियाँ है ।
हम सभी के पास शारीरिक , मष्तिकीय , व चरित्र की शक्तियाँ है । आइए पढ़ते हैं सच्ची बुद्धिमत्ता से संबंधित यह कहानी - :
एक बार की बात है , कई सौ साल पहले , एक वृद्ध व्यापारी था । पूरे जीवन भर उसने कठिन मेहनत की , परिणाम यह हुआ कि उसके पास अपार धन हो गया , जैसे-जैसे समय बीतता गया , उसके पास और ज्यादा धन इकठ्ठा हो गया । लेकिन एक दिन उसने ऐसा महसूस किया कि वह इस संसार में ज्यादा दिन तक जीवित नही रहेगा । वह सोचने लगा इस धन का क्या किया जाए... ।
उसके दो बेटे थे , उसने निश्चय किया कि वह उस धन को दोनो में नहीं बाँटेगा . किन्तु सारा धन उस बेटे को देगा जो उन दोनो में अपने को ज्यादा चतुर सिद्ध कर देगा । समस्या यह थी कि यह कैसे निश्चित किया जाए कि - दोनो बेटों में चतुर कौन है ? उसने निर्णय लिया कि दोनो की परीक्षा ली जाए ।
उसने दोनों बेटों को बुलाकर कहा , - " ये दो रूपये हैं । मैं चाहता हूँ कि तुम दोनो एक - एक रूपया लो , और बाहर अलग- अलग जाकर कुछ ऐसी चीज खरीद लाओ , जिससे सारा घर भर जाए , याद रखो तुम्हें 1 रू. से ज्यादा खर्च नहीं करना है ।
दोनो बेटों ने अपने पिता को ऐसे देखा जैसे उनकी अक्ल मारी गई हो । उन्होंने कहा - यह कैसे संभव है 1 रू. में कोई चीज इतनी मात्रा में कैसे खरीदी जा सकती है ? लेकिन वृद्ध वैसा ही करने पर अड़ा था जैसा वह कह चुका था । उसने कहा - " चले जाओ ", और ध्यान रखो इस काम में ज्यादा समय नहीं लगाना है , मैं तुम लोगों को 2 दिन का वक्त देता हूँ ।
दोनो युवक 1-1 रू. लेकर बाहर चले गए ।
पहला बेटा दिनभर बाजार में घूमता रहा । लेकिन उसे कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली , जिससे उसका उद्देश्य पूरा हो सके ; उसे यह लग रहा था कि पिताजी ने कुछ गलती की है ।
वह निराश होकर लौट ही रहा था कि उसे एक बैलगाड़ी जो सूखी घास से भरी हुई थी , दिखाई थी ।
" कुछ उम्मीद जगती है " - उसने सोचा ।
1 रू. में कितनी घास मिल सकती है यह सोचते हुए वह बैलगाड़ी चालक के पास गया और कीमत पूछी ; काफी मोलभाव के बाद वह एक रूपये में सारी घास खरीदने में सफल हुआ क्योंकि उन दिनों 1 रू. में आज की तुलना में ज्यादा चीजें खरीदी जा सकती थीं ।
अतः वह युवक घास की गाड़ी अपने पिता के घर ले गया , बड़ी उम्मीद से उसने सूखी घास घर के फर्श पर बिखेरी लेकिन घास पर्याप्त
नहीं थी , पूरा घर न भर सका ।
वृद्ध का दूसरा पुत्र अपने 1 रूपए को लेकर बाहर आया तो वह सीधा बाजार नही गया , वह बैठकर सोचने लगा , बहुत लंबे समय तक वह सोचता रहा ; शाम को उसे एक विचार सूझा , अपना रूपया लेकर वह तेजी से बाजार गया और एक दुकान से मोमबत्तियाँ खरीद लाया , जो कि काफी संख्या में आ गई ।
घर लौटने पर उसने देखा कि उसका भाई निराशापूर्वक खड़ा था ।
अंधेरा हो रहा था , दूसरा बेटा तेजी से उठा और हर कमरे में 2-2 , 3-3 मोमबत्तियाँ ले गया व उन्हें प्रज्ज्वलित कर दिया , सारा घर तुरंत ही उजाले से भर गया ।
उसके पिता उससे बहुत प्रसन्न हुए और कहा -बेटे , तुमने सच्ची बुद्धिमत्ता दिखाई है , मैं अपना सारा धन तुम्हें देने के लिए तैयार हूँ ।
इसी प्रकार हमें सोचना है , हम इन बुद्धिमत्ताओं का जो हमारे पास हैं , किस प्रकार उपयोग करते हैं । हम उनका उपयोग अनुपयोगी घास खरीदने में करते हैं या पूरे घर यानि देश को प्रकाश से भर देने के लिए उसका उपयोग करते हैं ?
कोई भी देश जब तक वह अच्छे नागरिक नहीं रखता , तरक्की नहीं कर सकता । अतः यदि हम अपने देश से प्रेम करते हैं तो हमें अच्छे नागरिक बनने की कोशिश करनी होगी ।
हम अपने आपको अच्छे नागरिक बनने का प्रशिक्षण दें व अच्छे इंसान बनने के गुण अपने में विकसित करें ।
जब हम अपने विधालय या अपनी शिक्षा पूरी करके देश के विभिन्न हिस्सों में जाएँगे , तब अपने देश को अच्छी नागरिकता के ऊजाले से भरने के योग्य बनेंगे ।
- W. M. RYBURN
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