हमारा अस्तित्व क्या है ?


कई बार हमारे मन में अजीब-से सवाल उठते हैं - अपने अस्तित्व से जुड़े सवाल । हमारा अस्तित्व क्या है ? क्यों हैं हम यहाँ ? क्यों दी गई है हमें , ये जिंदगी और ऐसी परिस्थितियाँ जो हमारे खुद के हाथ में ही नहीं होती । मुठ्ठी से रेत की तरह फिसलती इस जिंदगी में मुठ्ठी भर खुशियों की खोज में भटकता इंसान ; जीवन के संघर्षों से पार पाता , नई-नई चुनौतियों को आजमाता हुआ , एक परेशानी को हल किया तो दूसरी हाथ फैलाए खड़ी हैं और ठंड-गर्मी जैसी प्राकृतिक चीजें अलग ही परेशान करती है । खासकर जिसके पास इनसे बचने की व्यवस्था न हो , जिसकी जिंदगी लगातार संघर्षों से भरी हो और जिंदगी का अंत भी ऐसे ही संघर्षों के साथ हो जाए ।
आखिर क्यों ? हम ये सब झेलते हैं ? इतना संघर्ष करके , इतना परेशान होकर के क्या मिलेगा हमें ? क्योंकि अंततः सबको मरना ही है । कोई अपने साथ कुछ भी न लेकर आया था और न ही लेकर जाएगा । फिर इतना कष्ट क्यों ? इतना श्रम क्यों ? इतनी भाग-दौड़ क्यों ? इन सवालों के जवाब के जानने की इच्छा हर किसी के मन में होती होगी । जिसकी खोज में विभिन्न प्रकार के धर्म-ग्रंथों के अपने-अपने मत भी होंगे , हम इस विषय को दर्शन और इसके जानकारों को दार्शनिक कहते हैं परन्तु प्रत्येक व्यक्ति का जीवन के प्रति अपना एक अलग नजरिया होता है जो उसके खुद के अनुभवों का सार होता है और वह अपनी जिंदगी के लिए खुद ही दार्शनिक है । जैसा कि कह गया है - हर क्षण स्वयं में एक कहानी है इसी तरह हर एक जिंदगी अपने आप में विशेष है ।
इस संसार में क्या होता है , क्यों होता है , कौन करता है मैं ये सब जानने वाली कोई विचारक नहीं हूँ लेकिन हम सबका जीवन के प्रति क्या दृष्टिकोण होना चाहिए इस विषय के निर्धारण की कोशिश तो की ही जा सकती है ।
जीवन को अर्थपूर्ण तरीके से जीने के लिए या कहें कि सार्थक जीवन जीने के लिए , जीवन के प्रति स्पष्ट नजरिया होना आवश्यक है क्योंकि जब हमारे मन में अपने अस्तित्व से जुड़े सवाल उठते हैं तो मन उत्तर खोजता है । अधिकतर ये उत्तर प्राप्त करने के लिए हम अपने धर्म की सहायता लेते हैं और शायद इसीलिए हम दैवीय प्रतीक अथवा शक्ति अर्थात् ईश्वर की अनुभूति कर पाते हैं क्योंकि यहाँ कुछ तो है , कोई तो है , ये सबकुछ ऐसे ही नहीं हो रहा है ।
       ' विज्ञान ' चीजों को खोजता है , उन्हें सबके सामने प्रकट करता है और अनुप्रयोग करता है लेकिन मूल रूप से उनका निर्माण नहीं करता क्योंकि वे चीजें इस ब्रम्हांड में पहले से ही मौजूद हैं ।
जैसे , विज्ञान या साइंस की मदद से हम ये जान सके कि सूर्य का द्रव्यमान कितना है , पृथ्वी उससे कितनी दूर है और उसके चारों ओर चक्कर लगाती है , ठीक है लेकिन ये सब  निर्धारित किसने किया ? किसने सूर्य और पृथ्वी को बनाया ? किसने गुरूत्वाकर्षण बल को बनाया ? किसने सूर्य में इतनी गर्मी दी । किसका है ये बल ,किसकी है ये शक्ति ।
जो ईश्वर को नहीं मानता होगा या खुद को तथाकथित आधुनिक समझता होगा , मुझे लगता है उसे खुद भी जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर ऐसा लगा होगा कि कुछ तो है जो अलौकिक है , जो हमारे हाथ में नहीं है । चलिए अब इस विषय पर नजर डालते हैं - क्या हमारी जिंदगी और हमारा भविष्य सिर्फ हमारे हाथ में है ?
हमारे घर-परिवार के आर्थिक हालात और रहन-सहन जिनका हम पर काफी फर्क पड़ता है इसका( समय,स्थान,परिवार का )निर्धारण भी हम स्वयं नहीं कर सकते । दूसरा , हमारी जिंदगी में कब क्या हो जाए , इसकी भी निश्चितता नहीं है ।
तो फिर बचा क्या ? ऐसा महसूस होता है कि अपने होने पर भी हमारी इच्छा है या नहीं ? कभी-कभी बड़ी मजबूरी महसूस होती है न । मैं अपना ही उदाहरण देती हूँ , 12 वीं की परीक्षा में 90 % से ऊपर आने के लिए मैंने बहुत ज्यादा मेहनत की , हर प्रकार से तैयारी की , जैसे हर विद्यार्थी करता है , पूरी योजना और समय-सारणी के अनुसार पढ़ाई की , जो भी उपाय टाॅपर्स के इंटरव्यू में पढ़े थे सारे आजमा लिए । अपनी किस्मत अपने हाथों में होती है इस बात पर मुझे ढृढ़ विश्वास था , लाॅ ऑफ अट्रैक्शन  भी लगाया । लेकिन दुर्भाग्य से मेरा रिजल्ट 90 % से काफी दूर रहा (86%)। और वहीं 10 वीं की परीक्षा में बिना किसी विशेष तैयारी के 90% से भी ज्यादा पा लिया था । क्यों हुआ यह , किस्मत से ? मैं ये सब क्यों लिख रही हूँ ? क्योंकि मुझे लगता है हम कभी-कभी किसी चीज को  बहुत गंभीरता से ले लेते हैं , जिसके अलावा और कुछ महत्वपूर्ण नहीं लगता जैसे आजकल बच्चे परीक्षाओं को लेकर इतने चिंतित हो जाते हैं कि जीवन की बाकी खुशियों को भूल ही जाते हैं खैर , इस घटना ने मेरी जिंदगी बदल दी , मेरा सोचने का नजरिया बदल दिया , अब ऐसा लगता है कि हमारी जिंदगी में हमारे अलावा कोई और भी हिस्सेदार हैं ।
हमारी जिंदगी के हिस्सेदार हैं -  ईश्वर , उनके द्वारा रचित प्रकृति और हमारी किस्मत ।

किस्मत या भाग्य कौन बनाता है ?

हम स्वयं अपनी किस्मत बनाते हैं , अपने कर्मों से । हमारी जिंदगी में उत्पन्न होने वाली सभी परिस्थितियाँ हमारे ही कर्मों या कार्यों का परिणाम होती है । अब यहाँ प्रकृति का काम क्या होता है - मान लीजिए कोई विशेष  परिस्थिति हमारे जीवन में आती है या कोई घटना घटती है जो कहीं से भी हमारे द्वारा उत्पन्न की हुई न हो , तो यह प्रकृति के द्वारा निर्मित हुई , फिर उस परिस्थिति में हमने जो प्रत्युत्तर में कर्म किया , उसके परिणाम से  हमारी किस्मत का निर्धारण होता हैं ।
अधिकतर , सभी की जिंदगी में एक जैसे मोड़ आते हैं , उस समय जो जैसा करता है वैसे ही उसकी किस्मत बनती जाती है ।

हमारा अस्तित्व क्या है ? संसार में हमारा जन्म किसलिए हुआ है ? हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ?

इन प्रश्नों के उत्तर आध्यात्म की ओर ले जाते हैं और विरक्ति की भावना उत्पन्न करते हैं । जब आपको एहसास होता है कि यहाँ सबकुछ नश्वर है अर्थात् हमेशा रहने वाला नहीं है तो इस संसार से तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो जाता है । इस छोटी-सी जिंदगी में , हमने जो बड़े-बड़े सपने देख लिए हैं , परिवार और दोस्तों के साथ इतने जुड़ गए हैं कि उनसे अलग होने की या उन्हें छोड़कर जाने की भावना या मौत की कल्पना भी हमें भयभीत कर देती है ।
लेकिन क्या इस विषय में न सोचने से सच्चाई बदल जाएगी ।
अतः हमें अपने जीवन का उद्देश्य जानना होगा , इस संसार में अपना अस्तित्व खोजना होगा ताकि हमें मृत्यु से भय न हो बल्कि इस बात का संतोष हो कि हमने अपने जीवन को सार्थक किया और इसे अच्छे तरीके से जिया ।
दोस्तों ! ये जीवन अद्भुत है और इसके कई रोचक पहलू हैं । हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ये हमें जानना होगा , लेकिन यह निश्चित है कि हर चीज के होने का कारण अवश्य होता है । हमने अपने जन्म-स्थान , समय , माता-पिता और अपने शरीर का चुनाव नहीं किया , इनका चुनाव विधाता ने किया और हमें मनुष्य का जीवन दिया ।
       वैसे तो हर व्यक्ति के अपने अलग उद्देश्य हो सकते है लेकिन सम्मिलित रूप से हर जीवन का एक ही उद्देश्य होना चाहिए -
उस सर्वशक्तिमान ईश्वर का ध्यान करते हुए अपने जीवन के सभी कर्त्तव्यों का भलीभाँति पालन करना और उनकी प्राप्ति करना ।
जीवन के उद्देश्य की यही परिभाषा सबसे ज्यादा उचित ठहरती है क्योंकि जीवन का हर पहलू ईश्वर से जुड़ा है , प्रत्येक चीज की गहराई में अलौकिकता है । शेष संसारी चीजें जैसे धन,वस्तुएँ तो नष्टप्रायः हैं ये हमारे साथ सदैव नहीं रहेंगी , यहीं छूट जाएँगी और जीवन में केवल क्षणिक चीजों की प्राप्ति का उद्देश्य क्या बनाना , उन्हें तो कर्तव्य पालन करने हेतु एकत्र किया जा सकता है लेकिन उद्देश्य शाश्वत चीजों की प्राप्ति का बनाया जाता है जो सदैव रहे और सदैव कौन है , सर्वत्र कौन है - परमात्मा । इस संसार में बहुत सी चीजों के ऐसे कारण हैं जिन्हें हम कभी जान नहीं पाए , इसलिए इस प्रकृति के विरूद्ध क्यों , कैसा करने से हमें एक अर्थहीन तर्क के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा ।

अतः हमारा हित इसी में है कि हम सभी चीजों को स्वीकार कर लें , प्रकृति पर आस्था रखें कि जो होता है अच्छा होता है , यह विश्वास कर लें कि सबकुछ ईश्वर द्वारा निर्मित है और अपने मन में उनके प्रति समर्पण की भावना रखें इसलिए पूजा तथा प्रार्थना करना हमें शांति देता है क्योंकि जहाँ सत्य है वहाँ शांति है और सत्य ईश्वर हैं । यह शांति वही अनुभव कर सकता है जिसने कभी सच्चे मन से भगवान का ध्यान किया हो । 
जीवन के इस दर्शन की ओर कई महान विचारकों ने दृष्टि डाली है । मैंने इस ब्लाॅग में  एच.डब्ल्यू. लाँगफेलो की एक कविता  अनुवाद करके डाली है जिसमें एक जगह आता है - "  भले ही जीवन का अंत मृत्यु है लेकिन इसका लक्ष्य मृत्यु नहीं है । जीवन वास्तविक है और हम यहाँ सीखने के लिए आते हैं , जीवन जीने की कला ,अच्छाई-बुराई , सुख-दुख जैसे बहुत-से सबक सीखने के लिए आते हैं ।"
अंततः जीवन के उद्देश्य और अस्तित्व की खोज में हम यही उत्तर पाते हैं कि हमें यह जीवन ईश्वेरच्छा से मिला है और इसलिए उस सर्वश्रेष्ठ ईश्वर की प्राप्ति करके अपने जीवन को सार्थक बनाना ही हमारा परम उद्देश्य होना चाहिए , हमारा उद्देश्य उस स्थिति की प्राप्ति होना चाहिए जिसमें पहुँचकर हम संसार के बार-बार जन्म लेने के बंधन से मुक्त हो जाएँ , हमारा उद्देश्य स्वार्थ के मोह से मुक्ति पाना होना चाहिए और इस मुक्ति की साधना हर व्यक्ति अपने तरीके से कर सकता है , कोई जरूरतमंदों की सेवा करके , कोई भजन-भक्ति करके । यहाँ तक कि यदि हम अपने काम को भी पूरी सच्चाई और सदाचरण से करें तो यह भी एक प्रकार से ईश्वर भक्ति ही है ।

अपने कर्तव्यों का निस्वार्थ भाव से पालन करना और बदले की इच्छा न करना स्वयं में मोक्ष की साधना है ।
ये विचार मेरे अपने अनुभवों का सार हैं , मैंने अपने जीवन का उद्देश्य यही समझा है और जीवन से सबक सीखने की यात्रा जारी है और इसीके साथ , अद्भुतलाइफ में आध्यात्म का विषय भी जुड़ गया है ।
आप जीवन के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते हैं ? और आपका जीवन-दर्शन क्या है ? सबका अपना एक अलग नजरिया होता है , आप चाहें तो कमेंट के माध्यम से शेयर कर सकते हैं ।
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