शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी द्वारा रचित ये प्रेरणादायी कविता हमें बताती है कि
जीवन में परिस्थितियाँ हमेशा बदलती रहती है कभी सुख तो कभी दुख , लेकिन इस कारण अपने कर्तव्य को भूल जाना उचित नहीं है ।
जीवन की राह पर चलते हुए राहगीरों को हर समय अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए ।
जीवन में परिस्थितियाँ हमेशा बदलती रहती है कभी सुख तो कभी दुख , लेकिन इस कारण अपने कर्तव्य को भूल जाना उचित नहीं है ।
जीवन की राह पर चलते हुए राहगीरों को हर समय अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए ।
☆ पथिक से -
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पथ भूल न जाना पथिक कहीं !
पथ में काँटे तो होंगे ही ,
दूर्वादल-सरिता सर होंगे ही ,
सुंदर गिरि-वन-वापी होंगे ,
सुंदर-सुंदर निर्झर होंगे ।
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पथ भूल न जाना पथिक कहीं !
पथ में काँटे तो होंगे ही ,
दूर्वादल-सरिता सर होंगे ही ,
सुंदर गिरि-वन-वापी होंगे ,
सुंदर-सुंदर निर्झर होंगे ।
सुंदरता की मृगतृष्णा में ,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
जब कठिन-कर्म पगडंडी पर ,
राही का मन उन्मुख होगा ।
जब सपने सब मिट जाएँगे ,
कर्तव्य मार्ग सम्मुख होगा ।
राही का मन उन्मुख होगा ।
जब सपने सब मिट जाएँगे ,
कर्तव्य मार्ग सम्मुख होगा ।
तब अपनी प्रथम विफलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
अपने भी विमुख पराये बन ,
आँखों के सम्मुख आएँगे ,
पग-पग घोर निराशा के ,
काले बादल छा जाएँगे ।
आँखों के सम्मुख आएँगे ,
पग-पग घोर निराशा के ,
काले बादल छा जाएँगे ।
तब अपने एकाकीपन में ,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
रणभेरी सुन , कह ," विदा , विदा "
जह सैनिक पुलक रहे होंगे ।
हाथों में कुम-कुम थाल लिए ,
कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे ।
जह सैनिक पुलक रहे होंगे ।
हाथों में कुम-कुम थाल लिए ,
कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे ।
कर्त्तव्य प्रेम की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
पथ भूल न जाना पथिक कहीं ।
कुछ मस्तक कम पड़ते होंगे ,
जब महाकाल की माला में ।
माँ मांग रही होगी आहुति ,
जब स्वतंत्रता की ज्वाला में ।
जब महाकाल की माला में ।
माँ मांग रही होगी आहुति ,
जब स्वतंत्रता की ज्वाला में ।
POEM - PATH BHOOL NA JANA PATHIK KAHIN BY SHIVMANGAL SINGH SUMAN - HINDI SAHITYAKAR .
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