कहते हैं- जो अपनी मदद खुद करता है , उसकी मदद भगवान करते हैं ; इसलिए अपनी मदद स्वयं कीजिए । लेकिन , यदि कोई व्यक्ति स्वयं अपनी मदद करने में सक्षम होगा तो उसे भगवान से मदद की आवश्यकता ही क्यों होगी , उसने अपनी मदद स्वयं कर ली तो फिर भगवान क्या करेंगे ।
मेरे कहने का अर्थ है - कई बार , जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं , जिसमें हम कुछ कर ही नहीं पाते तो उसे भगवान के समर्पण करने में ही भलाई है । सीधी-सी बात है - जहाँ हमारी बुद्धि काम करना बंद कर देती है , जहाँ हम कोई निर्णय नहीं ले पा रहे होते हैं , जहाँ न हम और न ही कोई दूसरा हमारी मदद कर सकता है , जहाँ सारे रास्ते बंद हो जाते हैं ... वहाँ यदि कोई राह दिखाने वाला है तो वे हैं - भगवान । केवल भगवान जी ।
तो , जहाँ आवश्यकता हो , जब लगे , जब भी आपको अपने ईश्वर की याद आए - आप माँगिए उनसे मदद ! भगवान कोई दूसरे नहीं हैं , हम सबके हैं । अतः समर्पण भाव रखकर मदद माँगिए । आपको वह मिलेगी और यदि माँगा हुआ न मिले , तो भी अच्छा है , विश्वास कीजिए कि उसके न मिलने में ही आपकी भलाई थी । पढ़िए : -
> जो होता है , अच्छा होता है
यह सब मैंने इसलिए कहा जिससे मेरी बात का यह संदेश न जाए कि जहाँ आवश्यकता हो , आप वहाँ भी अपने अहंकार और खुद पर आतिआत्मविश्वास के कारण भगवान से मदद न माँगें और न ही खुद कुछ करें ।
" अपनी मदद खुद करें " से मतलब है जितना आपसे हो सके , जितना आप कर सकें - as possible as you can ! किसी काम के लिए पहले अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें फिर मदद के लिए किसी और के पास जाएँ ।
हमारे अंदर बहुत शक्ति होती है जैसे - शरीर ऋतुओं के अनुसार अनुकूलता बना लेता है , कई बार कुछ घाव अपने आप भर जाते हैं । कभी-कभी अंदर से ही ऐसी आवाज आती है कि ये करना चाहिए , ये नहीं करना चाहिए ।
अर्थात् सारे समाधान , सारे हल , सारी मदद हमारे अंदर ही मौजूद है लेकिन हम उसे बाहर ढ़ूढ़ते रहते हैं कभी अंदर झाँकते ही नहीं । दूसरों को बताते हैं अपनी मुश्किलें , लेकिन खुद से Share ही नहीं करते ।
हमारे बारे में , हमारी परेशानी के बारे में हमें ही ज्यादा अच्छे से पता होता है इसलिए यदि एक बार भी ध्यान से सारी परेशानियों पर विचार किया जाए , चिंतन किया जाए बजाय चिंता करने के तो उनका हल निकल आता है ।
ज्यादातर मामलों को बातचीत और सही तरीके विचार करके सुलझाया जा सकता है ।
अब देखिए , हमारी जो शक्तियाँ है वो किसने दी - भगवान ने । बोलने-सुनने की , विचार करने की शक्तियाँ भगवान से मिलीं , तो जो हमारी शक्तियाँ हैं वो भगवान की हुईं और जो भगवान जी की शक्तियाँ हैं वो हमारी हुईं ।
कहने का अर्थ है - किसी भी हालत में हम भगवान से अलग हैं ही नहीं । इसका अर्थ पराधीनता कदापि नहीं हो सकता क्योंकि आत्मा तो परमात्मा का ही अंश है ।
अतः जब हम , स्वयं को प्राप्त शक्तियों का पूर्ण सदुपयोग कर लेंगे केवल तब ही ईश्वर के पास से और शक्तियाँ माँगने के अधिकारी होंगे ।
पहले उतने का उपयोग करो , जितना तुम्हारे पास है । पहले अपनी बुद्धि को लगाओ और अपना दिमाग चलाओ फिर किसी दूसरे व्यक्ति से मदद माँगो ।
यह कैसे होगा ? ( अपनी मदद खुद ) -
मान लीजिए , कोई Problem आई , आप तुरंत उसे अपने friend या किसी Family member से बताते हैं । ये Trend आजकल आपसी निर्भरता को काफी बढ़ा रहा है । कोई भी छोटी-बड़ी समस्या या बात कई लोगों की राय से उतने अच्छे तरीके से हल नहीं हो पाती है , जितना कि ' खुद एक बार ध्यान से सोचने से ' हो जाती है । क्योंकि जितने मुँह , उतनी बातें । खैर , यदि कोई निर्णय जिसमें कई लोग शामिल हों और बहुत आवश्यक होने पर तो अवश्य ही आपस में बातचीत करके ही मामले का हल ढूढ़ना चाहिए ।
क्योंकि बात खुद की Life की हो रही है तो इस प्रकार के निर्णय जैसे - कहीं जाना चाहिए कि नहीं , गेम छोड़ Study करना , अपनी TV की आदत छुड़ाना , ऑनलाइन Timewaste न करना , Devices मैनेज करना , अपने Career संबंधी निर्णय लेना , अपने काम खुद करना , मन ही मन चीजों को Planned & Prepare करना , Job वगैरह के लिए तैयारी करना , रोजमर्रा के कामों को समय पर पूरा करना यानि कम-से-कम अपने काम तो खुद ही पूरे करना ।
देखिए , life में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हमारे लिए और कोई नहीं कर सकता , हमें ही करनी पड़ती है । जैसे - अपनी भूख मिटाना है तो खाना भी खुद को ही खाना पड़ेगा , किसी और के खाने से तो हमारी भूख नहीं मिटेगी ।
ठीक इसी तरह " यदि अपना जीवन सँवारना है , अपना कॅरियर बनाना है और सफल होना है तो मेहनत भी अपने को ही करनी पड़ेगी । "
फिर चाहे वो शारिरीक रूप से हो या मानसिक रूप से , आप अपनी मदद कीजिए । किसी से Guidance लीजिए , Research कीजिए ; लेकिन अपनी Problem का Solution आप ढ़ूढ़िए , अपने Decisions आप कीजिए , यह शक्ति आप ही के पास है- एक बार इसे पहचानिए और प्रयोग कीजिए .
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