शुभ महाशिवरात्रि ! भोलेनाथ की भक्ति में हम सभी लगे रहें । शिवरात्रि के पावन अवसर पर मैंने कुछ लिखने का सोचा , सोचा कि प्रभु शिव-शंकर के विषय में क्या लिखूँ ? परंतु शीघ्र ही यह बात मेरी समझ में आ गयी कि मेरे जैसे तुच्छ मनुष्य की भला क्या औकात जो मैं भगवान् की महिमा और कृपा का वर्णन कर सकूँ । उन कृपालु परमात्मा के विषय में तो अच्छे-अच्छे ऋषि-मुनि भी वर्णन करने में असमर्थ रहे हैं : " हरि अनंत - हरि कथा अनंता " कहकर, हम इस सन्दर्भ में प्रभु से क्षमा मांगते हैं और भजन तथा आरती गाते हैं :
जय शिव ओंकारा , ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
हंसानन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज ते सोहे ।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन मन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन मन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
यक्ष माला वनमाला मुण्डमाला धारी । चन्दन मृगमद चंदा भोले शुभकारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
ॐ जय शिव ओंकारा
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे । ब्रम्हादिक सनकादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
ॐ जय शिव ओंकारा
कर मध्ये च कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता । जगकर्ता जगहर्ता जगपालन कर्ता ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
ॐ जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ जन गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी मन वांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
कहत शिवानंद स्वामी मन वांछित फल पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
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