" हिंदी हैं हम वतन हैं , हिंदोस्ताँ हमारा !
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा । "
कितना प्रगाढ़ संबंध है भारत देश का हिंदी से , जो इस देश का नाम ही हिंदुस्तान पड़ गया ।
' हिंदी ' हमारी मातृभाषा ! हमारी राष्ट्रभाषा ! आज हिंदी दिवस है । इसलिए अद्भुतलाइफ की ओर से सभी पाठकों को , हिंदी-भाषियों को , हिंदी- प्रेमियों को और किसी भी तरह से हिंदी से जुड़े हुए लोगों को ' हिंदी-दिवस ' की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ! आप सभी हिंदी का प्रचार-प्रसार करने में अपना सहयोग देते रहें ।
और अपनी तरफ से , ब्लाॅग को पूर्ण शुद्ध हिंदी में लिखने की कोशिश हमारी भी रहेगी ।
हिंदी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है । आजकल फिर से हिंदी की लहरें उठ रही हैं और वापस इसका प्रयोग जोरों पर है । आँकड़े बताते हैं कि देश में ही नहीं दुनियाभर हिंदी भाषी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही हैं ।
भारत में बहुतायत रूप से हिंदी बोली जाती है और बचे हुए लोग जो हिंदी बोलते नहीं हैं पर कम से कम समझते तो जरूर हैं ।
हिंदी का प्रयोग और प्रचार-प्रसार करने में हिंदी ब्लाॅग्स , हिंदी समाचार-पत्रों , हिंदी टीवी चैनलों के साथ-साथ हिंदी फिल्मों ने भी बड़ी भूमिका निभाई है । हिंदी पठनीय सामग्री पर्याप्त मात्रा में ऑनलाइन भी उपलब्ध है । इसी वजह से बड़ी-बड़ी कंपनियाँ हिंदीभाषी ग्राहकों को लुभाने के लिए हिंदी में ही काफी रोचक विज्ञापन और बोलचाल की भाषा में ही उत्पादों के स्लोगन तैयार कर रही हैं ।
गूगल एडसेंस द्वारा हिंदी ब्लाॅग्स को सपोर्ट करना और फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स में हिंदी का बढ़ता चलन , लोगों के हिंदी से जुड़ाव को उजागर करता है ।
लेकिन , साहित्यिक हिंदी भाषा के लिए एक दुख की बात यह भी है कि आजकल हमनें हिंदी के शुद्ध खड़ी बोली रूप को विकृत कर दिया है । मैथिलीशरण गुप्त , महादेवी वर्मा ,सुमित्रानंदन पंत और रामधारी सिंह दिनकर ... जी के समय यानि हिंदी साहित्य में नई कविता काल के पहले या उस समय तक जो हिंदी का शुद्ध , साहित्यिक व पूर्ण रूप होता था , वह अब नहीं मिलता !
मुझे लगता है , आज के समय के लेखों में वैसी साहित्यिक भाषा मिल पाना मुश्किल है । क्योंकि कहीं न कहीं हम आधुनिकता से प्रभावित हैं ही । पहले के हिंदी कवि और लेखक हिंदी भाषा का प्रयोग नहीं करते थे बल्कि उसकी साधना करते थे । आज वैसे हिंदी साहित्य का सृजन करके हिंदी के शुद्ध रूप की रक्षा करने की आवश्यकता है ।
अब बोलचाल की हिंदी का स्वरूप कुछ ऐसा है : कई रंग हैं इसके पानी की तरह , जिसमें मिली वैसी बन गई - कभी हिंग्लिश तो कभी टेंगलिश । हिंदी भाषा को अंग्रेजी भाषा की वर्णमाला प्रयोग करके लिखने का चलन आजकल व्हाॅट्सप आदि में बहुत छाया है ।
हिंग्लिश को ही हिंदी का आजकल विकृत लेकिन आधुनिक चलन माना जा सकता है ।
परन्तु इसमें भी चिंतित होने की कोई बात नहीं है क्योंकि एक भाषा को हमेशा समयानुकूल परिवर्तित होने के लिए तैयार रहना चाहिए । जैसी आवश्यकता हो उसके अनुरूप ढ़लना चाहिए । जैसा चलन हो , जैसी माँग हो क्योंकि जो बदलता नहीं वह पीछे छूट जाता है ।
हमारी हिंदी में सभी भाषाओं को आत्मसात् करने की शक्ति है । हिंदी भाषा इतनी समृद्ध है और इसका शब्द-भंडार अतुलनीय है कि यह समय की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती है और इसलिए आज भी यह अपने स्थान पर कायम है । एक पूर्ण विकसित भाषा का मूल स्वरूप कभी नहीं बदलता , वह सदैव एकरूप रहती है । हिंदी भी एक पूर्ण भाषा है । इसके अपने शब्द-अपनी व्याकरण है । अतः केवल बोल चाल का तरीका बदल जाने से भाषा नहीं बदलती बस यदि आप अपने हृदय में उसे सहेज कर रखें , उसका सम्मान करें ।
इसी तरह , अंग्रेजी से हिंदी की तुलना करना और हिंदी बोलने में हिचक महसूस करने जैसी बातें बिल्कुल अनावश्यक हैं क्योंकि यह तो किसी व्यक्ति की सोच पर निर्भर करता है कि वह अपनी भाषा का सम्मान करता है या नहीं । देखिए , हर भाषा का अपना एक स्थान होता है , महत्व होता है । यह तो अपना-अपना भाषा प्रेम होता है जैसे कहते न ; दिल की भाषा वैसे ही । ठीक इसी तरह कुछ भाषाओं की आवश्यकता होती है जैसे आजकल अंग्रेजी की । तो जहाँ जो अच्छी लगे , वहाँ वह बोलिए । अतः भाषा से भाषा की तुलना और लड़ाई ही अनुचित है । एक सच्चा व्यक्ति सभी भाषाओं का सम्मान करता है ।
और वैसे भी हिंदी बोलने वालों की संख्या में वृद्धि होती ही जा रही है तो आइए हम सब भी इसी तरह अपनी हिंदी भाषा में सोचते रहें , बोलते रहें , लिखते रहें , पढ़ते रहें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते रहें । बस एक प्रार्थना है कि जहाँ तक हो सके यह सब हम हिंदी में ही करें बजाय हिंग्लिश के !
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1 comments:
Write commentsहिंदी की प्रथम ब्लॉग्गिंग एवं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट शब्दनगरी प्रस्तुत करता है : जीवनी लेखन प्रतियोगिया 2018
Replyसाहित्य समाज का दर्पण है, समाज का प्रतिविम्ब है, समाज का मार्गदर्शक है तथा समाज का लेखा जोखा है |
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