होली के रंगो की तरह जीवन के रंग - :
Adbhutlife के सभी Readers को HOLI के रंगों भरे त्यौहार की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !!! हम में से कुछ लोग होली के त्यौहार को खेल , मौज़-मस्ती , धूमधाम और बड़े उल्लास के साथ मनाते है तो कुछ यूँ ही टीवी programmes देखते हुए बढ़िया सा खाना खाकर शांति पूर्वक मनाना पसंद करते हैं , मुझे भी simply ही मनाना पसंद है क्योकि आजकल जिस तरह से होली के नाम पर लोग शोर-शराबा और हुड़दंग मचाते है उससे इसका पारम्परिक महत्व खो सा गया है साथ ही गर्मियों पानी की बर्बादी तथा chemical वाले रंगों से होने वाले नुकसान का विषय भी चिंताजनक है जिन से बचने के लिए हमें प्राकतिक तत्वों से बने हुए गुलाल या रंग से होली खेलनी चाहिए । वैसे ये तो अपनी-अपनी पसंद की बात है कि कोई किसी चीज़ को किस तरीके से करना चाहता है , लेकिन हमें यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे कारण किसी और व्यक्ति को कोई परेशानी न उठानी पड़े ।
होली का पौराणिक महत्व - :
हिन्दू धर्म में होली से सम्बंधित एक बड़ी रोचक कथा आती है , जो की इस प्रकार है - " प्राचीन समय में एक हिरण्यकश्यप नाम का राजा था जो भगवान श्री विष्णुजी का घोर विरोधी था , उसने अपने राज्य के लोगो से कह रखा था कि कोई भी भगवान की पूजा न करे बल्कि उसकी पूजा करे , लोग भय के कारण विवश थे । कोई भी हिरण्यकश्यप का विरोध करने का साहस नहीं रखता था । परन्तु दैवयोग से उसका पुत्र ' प्रह्लाद ' भगवन श्री हरि का बहुत बड़ा भक्त था । लेकिन उस दुष्ट राजा ने सोचा कि यदि उसके पुत्र ने ही उसकी बात नहीं मानी तो कोई और क्या मानेगा इसलिए प्रहलाद को मारने की ईच्छा से अपनी बहन होलिका को बुलाया ।
होलिका को एक वस्त्र वरदान में प्राप्त था जिसे ओढ़कर वह आग में भी नहीं जल सकती थी । अतः प्रह्लाद को मारने के लिए वह खुद उस वस्त्र को ओढ़कर उसे गोद में लेकर जलती हुई आग में बैठ गई लेकिन भगवान नारायण की कृपा से वह वस्त्र उड़कर प्रह्लाद पर जा पड़ा जिसके फलस्वरूप होलिका आग में नष्ट हो गई और भक्त प्रहलाद सुरक्षित रहे । अंततः दुष्ट हिरण्यकश्यप का भी अंत हुआ ।
" इस कथा से हमें यही सीख मिलती है कि बुराई कभी नहीं जीतती और भगवान सदैव अपने सच्चे भक्त की रक्षा करते है "
होली का पौराणिक महत्व - :
हिन्दू धर्म में होली से सम्बंधित एक बड़ी रोचक कथा आती है , जो की इस प्रकार है - " प्राचीन समय में एक हिरण्यकश्यप नाम का राजा था जो भगवान श्री विष्णुजी का घोर विरोधी था , उसने अपने राज्य के लोगो से कह रखा था कि कोई भी भगवान की पूजा न करे बल्कि उसकी पूजा करे , लोग भय के कारण विवश थे । कोई भी हिरण्यकश्यप का विरोध करने का साहस नहीं रखता था । परन्तु दैवयोग से उसका पुत्र ' प्रह्लाद ' भगवन श्री हरि का बहुत बड़ा भक्त था । लेकिन उस दुष्ट राजा ने सोचा कि यदि उसके पुत्र ने ही उसकी बात नहीं मानी तो कोई और क्या मानेगा इसलिए प्रहलाद को मारने की ईच्छा से अपनी बहन होलिका को बुलाया ।
होलिका को एक वस्त्र वरदान में प्राप्त था जिसे ओढ़कर वह आग में भी नहीं जल सकती थी । अतः प्रह्लाद को मारने के लिए वह खुद उस वस्त्र को ओढ़कर उसे गोद में लेकर जलती हुई आग में बैठ गई लेकिन भगवान नारायण की कृपा से वह वस्त्र उड़कर प्रह्लाद पर जा पड़ा जिसके फलस्वरूप होलिका आग में नष्ट हो गई और भक्त प्रहलाद सुरक्षित रहे । अंततः दुष्ट हिरण्यकश्यप का भी अंत हुआ ।
" इस कथा से हमें यही सीख मिलती है कि बुराई कभी नहीं जीतती और भगवान सदैव अपने सच्चे भक्त की रक्षा करते है "
होली और जीवन - दोनों में विभिन्न रंग :-
हमारा जीवन और होली का त्यौहार कई मायने में समान है ; होली के विभिन्न रंग जीवन की विविवधताओं का प्रतीक है ॥ अपनी ज़िंदगी में हम कई प्रकार के लोगों से मिलते है , कुछ अच्छे-कुछ बुरे लेकिन सभी के साथ हमें सामंजस्य बनाकर रखना पड़ता है , किसी भी एक रंग अर्थात पक्ष का अधिक होना जीवन के संतुलन को बिगाड़ देता है अतः इस होली में हम जीवन के सभी अद्भुत रंगो को स्वीकार करें और पुराने बुरे अनुभवों को भुलाकर अपने मन को शांति , प्रेम और आशा से भर लें ।
अब से नयी शुरुआत और नयी उम्मीद का संकल्प लेते हुए फिर से आप सभी को HAPPY HOLI ...