बूढ़ा गिर गया-लेख

बूढ़ा गिर गया : प्रकृति के प्रति हमारा कर्त्तव्य क्या है ? इस विषय पर एक विचारात्मक लेख -  

बड़े-बुज़ुर्गों की तरह खड़ा हुआ , वर्षों से पशु-पक्षियों को आश्रय देता , खुद धूप-बारिश सहन करके मनुष्यों को मीठे फल देने वाला वह बूढा पेड़ अब गिर गया , कटकर पड़ा था वहीँ , उसे देखकर लगा जैसे कोई अपने घर का ही सदस्य था जो अब हमें छोड़कर चला गया , खड़ा-मुस्कुराता पेड़ अब अस्तित्वहीन हो गया लेकिन अच्छी बात ये थी कि उसे यूँ धीरे-धीरे मरते नहीं देखा । कल तक जो हरा-भरा खड़ा था , पेड़ काटने वाली मशीन ने उसे  थोड़ी देर में ही धूल में मिला दिया ; उसने किसी से कोई शिकायत नहीं की , करता भी कैसे ? वृक्ष जो ठहरा - प्रकृति माता का पुत्र और प्रकृति कभी शिकायत करती है क्या ? मेरी नदियों को गन्दा मत करो ! मेरे वृक्षों को मत काटो ! मेरे पर्यावरण को दूषित मत करो ! सोचिये यदि करती तो , जैसे हम रोकते है दूसरों को अपना सामान दुरूपयोग करने से ।
तो क्या प्रकृति हमारी कुछ नहीं , क्यों हम न ही स्वयं इसका ख्याल रखते है और न ही दूसरों को इसका ध्यान रखने को कहते है ? एक-दूसरे के ऊपर छोड़ देने से काम नहीं बनता क्योंकि प्रकृति के संसाधनों को बचाने की ज़िम्मेदारी केवल कुछ लोगों की नहीं है , हम सब की है । कारण चाहे जो भी हो - कभी सड़क बनाने के लिए , कभी उद्योग डालने के लिए ,  हमेशा इंसानों के उपयोग के लिए वृक्षों और प्रकृति के अन्य संसाधनों की बलि चढ़ाई गयी है । जब प्रकृति के संसाधनों का उपयोग हम सभी करते हैं तो उसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी भी हम सबकी है । 
                सुबह उठकर अपना पैर धरती माँ पर रखते हुए हमें कृतार्थ होना चाहिए , जल , वायु  , फल-फूल , फर्नीचर आदि सबकुछ हमे प्रकृति से प्राप्त है , ईश्वर ने हमे इतनी सुन्दर प्रकृति दी है और साथ में विभिन्न संसाधन प्रदान किये है ।  हम ईश्वर को इतना मानते है लेकिन ये भूल जाते है कि ये प्रकृति भी ईश्वर प्रदत्त है और हम इसे अनुदान में ले रहे है तो कम से कम इसे ईश्वर की सम्पति मानकर सम्भाल तो सकते है । 

प्रकृति और पृथ्वी पर यदि हमारा अधिकार है तो कुछ कर्तव्य भी है ; प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली का आनंद तो हम सब लेते है तो इसे बनाए रखने का और सदुपयोग करने का कर्त्तव्य भी हमारा है । 

मेरे घर के आसपास न जाने कितने वर्षों से लगे हुए पेड़ , जिन्हे अब सड़क के चौड़ीकरण के लिए काट दिया गया है , कुछ लोग का कहना है प्राचीन समय में सम्राट अशोक ने लगवाए थे ।  या किसी और ने , पक्का नहीं पता लेकिन अब तक उन पेड़ों ने सबको बहुत दिया , गर्मियों में छाया और खट्टे-मीठे आम भी दिए , बहुत याद आएगी उन पेड़ों की  और उसके उपकार की भी जिसने वो पेड़ लगाए ।
 खैर , उन बूढ़े वृक्षों को कटने से हम बचा तो नहीं सके लेकिन उनकी याद में ये संकल्प ज़रूर ले सकते हैं कि हम इतने पेड़ तो जरूर लगाएं , जिनकी देखभाल कर सके और जिससे वो प्रकृति को शुद्ध रखने में सहयोग करते हुए सबके काम आएं ।