कविता - मनुष्य की मूर्ति
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देवलोक से मिट्टी लाकर
मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता !
रचता मुख जिससे निकली हो ,
वेद - उपनिषद की वर वाणी
काव्य - माधुरी , राग - रागिनी
जग - जीवन के हित कल्याणी
हिंस्र जन्तु के दाढ़ युक्त
जबड़े - सा पर वह मुख बन जाता !
देवलोक से मिट्टी लाकर ,
मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता !
रचता कर जो भूमि जोतकर ,
बोएँ , श्यामल शस्य उगाएँ
अमित कला कौशल की निधियाँ
संचित कर सुख - शान्ति बढ़ाएँ
हिस्र जन्तु के नख से संयुत
पंजे - सा वह कर बन जाता !
देवलोक से मिट्टी लाकर ,
मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता !
दो पाँवों पर उसे खड़ाकर ,
बाहों को ऊपर उठवाता
स्वर्ग लोक को छू लेने का
मानो हो वह ध्येय बनाता
हाथ टेक धरती के ऊपर
हाय , नराधम पशु बन जाता !
देवलोक से मिट्टी लाकर ,
मैं मनुष्य की मूर्ति बनाता !
- हरिवंशराय बच्चन
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