हमें नहीं चाहिए

हमें नहीं चाहिए / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’-
Friends ! हमें अपने लिए कैसा गुरु, साधू, पंडित या उपदेशक चाहिए , हो सकता है इसकी परिभाषा हमने अभी तक न बनायीं हो लेकिन कैसा नहीं चाहिए, कवि हरिऔध इस पर बड़ी अच्छी सलाह देते है ; देखिये -
आप रहे कोरा शरीर के बसन रँगावे ।
घर तज कर के घरबारी से भी बढ़ जावे ।
इस प्रकार का नहीं चाहिए हम को साधू ।
मन तो मूँड़ न सके मूँड़ को दौड़ मुड़ावे ।1।

मन का मोह न हरे, राल धान पर टपकावे ।
मुक्ति बहाने भूल भूलैयाँ बीच फँसावे ।
हमें चाहिए गुरू नहीं ऐसा अविवेकी ।
जो न लोक का रखे न तो परलोक बनावे ।2।

बूझ न पावे धर्म-मर्म बकवाद मचावे ।
सार वस्तु को बचन चातुरी में उलझावे ।
इस प्रकार का नहीं चाहिए हम को पंडित ।
जो गौरव के लिए शास्त्र का गला दबावे ।3।

न तो पढ़ा हो न तो कभी कुछ कर्म करावे ।
कर सेवाएँ किसी भाँति जीविका चलावे ।
कभी चाहिए नहीं पुरोहित हम को ऐसा ।
पूरा क्या, जो हित न अधूरा भी कर पावे ।4।

सीधे सादे वेद बचन को खींचे ताने ।
अपने मन अनुसार शास्त्र सिध्दान्त बखाने ।
हमें चाहिए नहीं कभी ऐसा उपदेशक ।
जो न धर्म की अति उदार गति को पहचाने ।5।

बके बहुत, थोथी बातें कह, मूँछें टेवे ।
निज समाज का रहा सहा गौरव हर लेवे ।
इस प्रकार का हमें चाहिए नहीं प्रचारक ।
कलह फूट का बीज जाति में जो बो देवे ।6।

चाहे सुनियम तोड़ ढोंग रचना मनमाने ।
मतलब गाँठा करे समाज-सुधार बहाने ।
नहीं चाहिए कभी सुधारक हम को ऐसा ।
ठीक ठीक जो नहीं जाति नाड़ी गति जाने ।7।

घी मिलने की चाह रखे औ वारि बिलोवे ।
जिसकी नीची ऑंख जाति का गौरव खोवे ।
इस प्रकार का नहीं चाहिए हम को नेता ।
जो हो रुचि का दास नाम का भूखा होवे ।8।

तह तक जिसकी ख समय पर पहुँच न पावे ।
थोड़ा सा कुछ करे बहुत सा ढोल बजावे ।
देश-हितैषी नहीं चाहिए हम को ऐसा ।
मरे नाम के लिए देश के काम न आवे ।9।

निज पद गौरव साथ सभा को जो न सँभाले ।
सभी सुलझती हुई बात को जो उलझाले ।
इस प्रकार का नहीं चाहिए हमें सभापति ।
जिसे जो चाहे वही मोम की नाक बना ले ।10। 

है न ! ये बहुत अच्छी कविता | मुझे मालूम है , यह आपको भी ज़रूर पसंद आई होगी !
(From : KAVITAKOSH)
Hindi poem by kavi ayodhya singh upadhyaya hariaudh in hindi.