सुजाता, गाँव के माहौल में पली-बढ़ी एक बुद्धिमान और पढ़ाई-लिखाई में होशियार लड़की है । उसकी सबसे बड़ी विशेषता है उसका सरल स्वभाव । वह सदैव अपने माता-पिता और परिवार वालों के लिए पहले सोचती है और यही बात उसके लिए दुविधा की स्थिति खड़ी कर देती है ।
सुजाता ने ग्रेजुऐशन तक की पढ़ाई पूरी कर ली है और वह आगे की पढ़ाई तथा जाॅब करना चाहती है किंतु परेशानी इस बात की है कि उसका घर एक गाँव में स्थित है जहाँ न उच्च शिक्षा की व्यवस्था है और न ही नौकरी आदि की कोई संभावना है । इसके साथ ही, शहर जाकर न रहने का एक और कारण है उसका अपने माता-पिता से लगाव, जिनकी देखभाल करने वाला उसके अलावा और कोई नहीं है ।
सुजाता ने ग्रेजुएशन अच्छे नंबरों से पास किया है । प्राइवेट नौकरी के वेतन में जबकि उसके पास कोई अनुभव भी नहीं है ; वो अपने शहर में रहने का खर्च ही नहीं निकाल सकती तो अपने घरवालों के लिए क्या बचाएगी और रही सरकारी नौकरी की बात तो जब तक उसकी तैयारी करो तब तक उसकी जरूरतों का क्या होगा और वो भी अपने गांव में मिल जाए ये जरूरी थोड़े है ! यही सब सोचकर वह परेशान रहती है ।
सुजाता के साथ एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके दिल और दिमाग में लगातार टकराव चलता रहता है ।
वह यदि बाहर दूसरे शहर जाकर कुछ करने की सोचती है तो उसका दिल कहता है -"तुम एक गैरजिम्मेदार स्वार्थी लड़की हो जो केवल अपने कॅरियर के लिए उन माँ-बाप को अकेले छोड़ आई जिन्हें देखभाल की आवश्यकता है क्योंकि तुम्हारे अलावा उनका कौन है ?"
वह यदि बाहर दूसरे शहर जाकर कुछ करने की सोचती है तो उसका दिल कहता है -"तुम एक गैरजिम्मेदार स्वार्थी लड़की हो जो केवल अपने कॅरियर के लिए उन माँ-बाप को अकेले छोड़ आई जिन्हें देखभाल की आवश्यकता है क्योंकि तुम्हारे अलावा उनका कौन है ?"
दूसरी तरफ यदि वह अपने गाँव में, अपने माँ-बाप के साथ रहने का फैसला लेती है तो दिमाग उसे परेशान करना चालू कर देता है कि - "तुमने यदि कुछ किया ही नहीं तो तुम्हारा शिक्षा ऋण लेकर इतना पढ़ना व्यर्थ है !"
ये दिल और दिमाग की लड़ाई उसे कुछ करने ही नहीं देती ।
ये दिल और दिमाग की लड़ाई उसे कुछ करने ही नहीं देती ।
वह आगे बढ़ना चाहती है, कुछ करना चाहती है, आत्मनिर्भर बनना चाहती है पर अपने घर और माँ-बाप को छोड़कर दूसरे शहर में नहीं जाना चाहती ।
वह मेहनत से कमाए हुए अपने पैसे बजाय अपना शिक्षा ऋण चुकाने के, किसी के घर का किराया चुकाने में नहीं खर्च करना चाहती ।
वह अपना सारा वेतन केवल किराए के घर और दूसरे शहर में रहने के खर्चे भरने में नहीं लगाना चाहती ।
वह अपने माँ-बाप के लिए कुछ बचाना चाहती है , अपने घर के लिए कुछ करना चाहती है ।
सुजाता, अभी भी दिल और दिमाग की लड़ाई के बीच में फंसी हुई है । जिसके कारण सभी अवसर उसके हाथ से निकलते जा रहे हैं ।
सुजाता, अभी भी दिल और दिमाग की लड़ाई के बीच में फंसी हुई है । जिसके कारण सभी अवसर उसके हाथ से निकलते जा रहे हैं ।
उसे कुछ समझ नहीं आता कि वह क्या करे ?
इसी असमंजस में पड़कर उसने कोई निर्णय ही नहीं लिया, जिससे वह और अधिक परेशान हो चुकी है ।
दोस्तों ! सुजाता एक ऐसे युवा-वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है जो पलायन की समस्या से ग्रसित हैं । पढ़ाई तथा नौकरी के लिए उनके गाँव/छोटे शहर में कोई अवसर उपलब्ध नहीं है और बड़े शहर में जाने के लिए उन्हें अपना घर-परिवार और माँ-बाप को छोड़ना पड़ता है । साथ ही, दूसरे शहर में रहने से अतिरिक्त खर्च भी बढ़ जाता है । उन्हें सदैव अपने परिवार की जरूरत महसूस होती है, जिससे वे अकेलेपन और अवसाद के शिकार हो जाते हैं ।
सुजाता के जैसी परिस्थितियों में फंसे हुए युवाओं को हमेशा यही बातें खटकती हैं :
> हमारे देश में विकास केवल कुछ प्रमुख शहरों पर केन्द्रित क्यों है ?
> हमें अपना घर सिर्फ इसलिए छोड़ना पड़ता है क्योंकि हम किसी बड़े शहर में पैदा नहीं हुए जहाँ नौकरी और पढ़ाई के बहुत अवसर हैं ।
> हमारी शिक्षा के लिए माँ-बाप को न सिर्फ काॅलेज की फीस का इंतजाम करना पड़ता है बल्कि उस शहर में रहने की व्यवस्था भी करनी पड़ती है ।
> घर-परिवार से दूर नए शहर में, नए काॅलेज में जब हम दुनिया को जानना शुरू करते हैं तब सुरक्षा और माता-पिता के मार्गदर्शन की, जरूरत होती है जो हमें नहीं मिल पाता है ।
> जो विद्यार्थी पढ़ना चाहते हैं लेकिन अपने घर से दूर नहीं रहना चाहते फिर भी घर से दूर रहने के कारण उनकी पढ़ाई करने की क्षमता प्रभावित होती है ।
> इसी तरह दूसरी जगह नौकरी करने वाले लोगों को परिवार की प्रेरणा और सहारे की जरूरत होती है जो न मिल पाने से वे थकान और निराशा महसूस करते हैं । उन्हें रोजमर्रा के छोटे-बड़े काम से लेकर ऑफिस का काम स्वयं करना पड़ता है, जिससे वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान भी ठीक से नहीं रख पाते । वहीं घर-परिवार में हर काम सभी सदस्य मिलकर कर लेते हैं और एक व्यक्ति पर अपेक्षाकृत कम भार रहता है ।
> घर में रहकर जो खर्च बच सकता है वह दूसरी जगह पर अनावश्यक भार बन जाता है ।
ऐसे न जाने कितने नुकसान झेलने पड़ते हैं उन लोगों को जिनका घर किसी विकसित शहर पर स्थित नहीं होता है । यह समस्या कैसे हल की जा सकती है देखते हैं :
दोस्तों ! कहते हैं - "जहाँ चाह-वहाँ राह", यदि आप चाहें तो हर क्षेत्र में, हर जगह में संभावनाएँ खोज सकते हैं । आजकल तो समय इंटरनेट का है जिससे हम हर प्रकार की सूचना घर बैठे पा सकते हैं और जो चाहे वो सीख सकते हैं ।
इस दिशा में उम्मीद केवल अपने आप से की जानी चाहिए क्योंकि कोई दूसरा या सरकार आकर हमारे गांव/क्षेत्र का विकास करे, इसका इंतजार कब तक करेंगे हम ?
हमें खुद अपने क्षेत्र में संभावनाएँ खोजनी होगी और अपने अंदर Entrepreneurial Skills विकसित करनी होगी जिससे हमारा कॅरियर तो बने ही ; साथ में, दूसरों को भी रोजगार प्राप्त हो ।
इसके लिए हमें अपने क्षेत्र में ही विकास के अवसर खोजने होंगे, वहाँ कौन-सा काम शुरू किया जा सकता है यह जानकर लोगों की आवश्यकताएँ समझनी होंगी और इस प्रकार एक उचित पूर्वयोजना बनाकर आप अपना Start-up खोल सकते हैं और अपने क्षेत्र के विकास का गौरव हासिल कर सकते हैं ।
इस दिशा में उम्मीद केवल अपने आप से की जानी चाहिए क्योंकि कोई दूसरा या सरकार आकर हमारे गांव/क्षेत्र का विकास करे, इसका इंतजार कब तक करेंगे हम ?
हमें खुद अपने क्षेत्र में संभावनाएँ खोजनी होगी और अपने अंदर Entrepreneurial Skills विकसित करनी होगी जिससे हमारा कॅरियर तो बने ही ; साथ में, दूसरों को भी रोजगार प्राप्त हो ।
इसके लिए हमें अपने क्षेत्र में ही विकास के अवसर खोजने होंगे, वहाँ कौन-सा काम शुरू किया जा सकता है यह जानकर लोगों की आवश्यकताएँ समझनी होंगी और इस प्रकार एक उचित पूर्वयोजना बनाकर आप अपना Start-up खोल सकते हैं और अपने क्षेत्र के विकास का गौरव हासिल कर सकते हैं ।