और बना लीजिए अपनों को फिर से अपना


कुछ समय पहले आपका अपने एक रिश्तेदार से मनमुटाव हो गया था या किसी दोस्त से बहस हो गई थी । थोड़ी-बहुत गलतफहमी और थोड़े-से गुस्से के कारण आप लोगों ने अपना रिश्ता ही तोड़ लिया । किसी ने कुछ कहा किसी ने कुछ समझा और हो गए अलग और अब आप लोगों का एक-दूसरे से बोलना ही बंद है , घर आना-जाना तो दूर की बात है ।
किसी त्यौहार में या किसी फंक्शन में मिलना चाहते हैं तो भी एक-दूसरे का मुँह ताकते रहते हैं कि उसने नहीं बुलाया तो मैं क्यों जाऊँ और यदि मैंने बुलाया पर वो नहीं आया तो ?
फिर भी यदि कभी-कभार सामना हो गया तो फाॅर्मेलिटी निभाकर निकल लेंगे भले ही मन में और बातें करने की इच्छा हो ।
ऐसे बीच परिस्थिति में फंसे हुए लोगों के लिए जो न तो पुराने रिश्ते भुला पाते हैं और न ही उन रिश्तों को नया जीवन दे पाते हैं मेरे पास एक सुझाव है :
1. आप में से कोई न कोई शुरूआत अवश्य करे , चाहें तो किसी को एक मध्यस्थ बना लें ।
2. बच्चों के द्वारा बातचीत आगे बढ़ा सकते हैं ।
3. किसी दिन सामना होने पर मौका ढूढ़कर अपनी बात उनके सामने रखें, गलतफहमी दूर करें, यदि वे गलत हों तो उन्हें क्षमा करें और यदि आप गलत रहे हों तो उनसे क्षमा मांग लीजिए ।
4. इतना सब करके भी कुछ ठीक न हो तो उन्हें भूल जाइए ।
5. इतना सब न करना चाहें तो ऐसे ही भूल जाइए और आगे बढ़िए ।
आप कहेंगे , ये क्या बात हुई कि भूल जाइए ।
पर किसी बात को अटकाए रखने से अच्छा है कि आप या तो सब ठीक कर लें या छोड़ दें ।
दोस्तों ! किस बात की इतनी लंबी नाराजगी ? कभी किसी जमाने में , किसी व्यक्ति ने आपको कुछ कहा था .... तब वो जिस हाल में था , तब जैसे उसके विचार थे , जैसी परिस्थितियाँ रही होंगी , वैसी अब नहीं रही । कहते हैं समय हर घाव भर देता है । वक्त बदलता है ,परिस्थितियाँ बदलती हैं तो हमारा सोचने का नजरिया भी बदलता है । हम मान लेते हैं कि हाँ हम गलत थे ,फिर इसे स्वीकारने में क्या बुराई है ।
अतः छोड़िए अपने इस व्यर्थ के अहंकार को ! व्यर्थ की अगर-मगर को ! आशंकाओं को ! और बना लीजिए अपनों को फिर से अपना । छोड़िए हर नाराजगी को !