बाह्य रूप से बड़ा आंतरिक सौंदर्य

हम बोलचाल में कहते हैं - शक्ल पर मत जाना । देखा जाए तो , न सिर्फ व्यक्तियों में बल्कि वस्तुओं में भी हम सुंदर-असुंदर देखते हैं ।


सौंदर्य का उपासक हर मनुष्य होता है ,सुंदर चीजें किसे पसंद नहीं होती । सभीके मन में चीजों का बाह्य सौंदर्य एक पक्षपात उत्पन्न करता है । बाह्य रूप यानि जो दिखता है । जो सामने है , प्रकट है और आंतरिक रूप यानि जो अंतर्निहित है , अप्रकट है किंतु वह भी जाना जा सकता है ।
वास्तव में सौंदर्य क्या है - हम कहेंगे जो भी चीज देखने पर मन को भा जाए वह सुंदर है उसका यह प्रभाव ही सौंदर्य है जैसे - प्रकृति ।
पर क्या सुंदरता के प्रति इतना मोहित होना उचित है ? किसी चीज का केवल बाह्य रूप देखकर उसके प्रति निर्णय करना क्या सही है ? क्या रूप , शक्ल , बनावट या प्राकट्य को इतनी तवज्जो देना चाहिए ?
मेरे ख्याल से - नहीं । दिखने से ज्यादा महत्व होने का होता है । बहुत-सी अच्छी चीजें किसी में अंतर्निहित होती हैं । केवल बाहर का रूप और प्राकट्य देखकर प्रभावित होना ठीक नहीं । सिर्फ दिखावे और प्रदर्शन की होड़ में हम अपने वास्तविक संस्कार , मूल्य व मौलिकता खोते जा रहे हैं । इंसान अपनी वास्तविक पहचान और प्राकृतिक सुंदरता छिपा देता है कृत्रिमता की आड़ में , केवल इस सुंदर-असुंदर की भावना से प्रभावित होकर !
सुंदर कौन है - विकारशून्य व्यक्ति कितना सुंदर लगता है , चरित्रवान व्यक्ति कितना अच्छा लगता है । जिसमें क्रोध न हो , ईर्ष्या न हो , कोई दुर्गुण-कोई बुराई न हो वह मनुष्य सुंदर है । जिसमें सद्भावनाएँ हों वह मनुष्य सुंदर है । कर्मशील,धैर्यवान,संयमी,विनम्र और सदाचारी व्यक्ति सुंदर है । हम शरीर की सुंदरता देखते हैं जो अस्थायी है , अनित्य है , क्षणिक है । परंतु आत्मा की सुंदरता नहीं देखते और न ही मन को सुंदर बनाते हैं । बजाय स्वभाव को सुधारने के बस बाह्य रूप को ही सँवारते रहते हैं । कहने का आशय है - हमें अपने मन और स्वभाव को सुंदर बनाना चाहिए ।
> प्रेम और कृतज्ञता का सौंदर्य ( संदर्भ : ' पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ' जी के विचार में धरती माता के प्रति मनुष्यों का कर्त्तव्य ) -  
आदमी की चमड़ी में क्या खूबसूरती है , सुंदर तो उसका मन होता है । जिसके मन में दूसरों के प्रति प्रेम भाव रहता है , जो दूसरो के थोड़े से भी उपकार का सदा स्मरण करता रहता है और उसका बदला चुकाने का प्रयत्न करता है , वही मनुष्य सुंदर है और इसी सौंदर्य से मनुष्यता एवं इस वसुधा की शोभा बढ़ती है । 
अतः हम किसी का मूल्य उसके बाह्य रूप से नहीं बल्कि उसकी आंतरिक सुंदरता - चरित्र , व्यवहार और कार्यों से करें । चरित्र सबसे बड़ी संपत्ति है , बाह्य रूप अस्थायी है । खत्म करें व्यर्थ दिखावे की भावना को और सभी को उनकी क्षमताओं व योग्यताओं से आंकें ।