हमारी संस्कृति

 कहाँ है हमारी संस्कृति और संस्कार :

' संस्कृति '  शब्द ही अब अनसुना-सा लगता है , आज के इस तथाकथित modern ज़माने में हम लोग अपने  संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल भूलते जा रहे हैं , तो भी यह ज़ीवित है परंतु दिल से नही , दिखावे के रूप में ,  मन में ही सही ।  हमारी भारतीय संस्कृति बहुत समृद्ध एवं पुरातन है , इतनी महान व श्रेष्ठ धरोहर पर हर व्यक्ति को गर्व होना चाहिए । अवश्य है ; फिर हम क्यों विपरीत सभ्यता की ओर अग्रसर है । क्या लार्ड मैकाले की युक्ति * काम कर गई है ? मुझे तो यही लगता है । नहीं तो कोई विशाल जल-स्त्रोत छोड़कर ओस पाने की आस क्यों करेगा भला ?
      हमारी संस्कृति संतोष करना सिखाती है , परोपकार करना सिखाती है , आपसी सहयोग की भावना सिखाती है जो अब क्रमशः असंतोष , स्वार्थता और प्रतिस्पर्धा से बदलती जा रही है । विडम्बना तो ये है कि हमने अन्य संस्कृतियों का भी अच्छा पक्ष नहीं सीखा केवल बाहर के दिखावे को ही मान लिया ; मैं ऐसा क्यों बोल रही हूँ - हो सकता है किसी मायने में यह अवधारणा गलत हो , अच्छी बात होगी । लेकिन मैने यही अनुभव किया है । बड़े-बुज़ुर्ग और समझदार लोगों में तो जागृति है , वे अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए चिंतित हैं परंतु समस्या तो देश के भावी कर्णधारों यानि बच्चों और युवाओं की है ।
एक college student होने के कारण , मैने जो माहौल वहां पाया है , उसे देखकर लगता नहीं कि ये students उसी भारत वर्ष के विद्यार्थी हैं जिसने सदैव संयम एवं सदाचार युक्त विद्यार्थी जीवन का सन्देश दिया है ।

 वास्तव में , आज के समय में बच्चों और युवाओं अर्थात नयी पीढ़ी का भविष्य नैतिक एवं आध्यात्मिक रूप से अंधकारमयी दिखाई पड़ता है , भले ही Technology , Career , Success अदि भौतिक रूपों से सब पर्याप्त प्रगति पर है पर इनके साथ नैतिक शिक्षा की भी बहुत आवश्यक्ता है ।
       कहने का अर्थ यही है - कि हमें विद्यार्थियों को यह शिक्षा देनी होगी कि जीवन में सदैव मूल्य सर्वोपरि होते हैं । और संस्कृति ही हमें वास्तविक मूल्यों का ज्ञान देती है । स्वयं की इच्छाओं की पूर्ती के साथ-साथ देश और समाज के हितों का ख्याल रखना भी हमारा कर्तव्य है ।
टीवी - फिल्मों में दिखाए जाने वाले फैशन और स्टाइल से तो हम पहले ही प्रभावित हो गए थे , बची हुई कसर इन्टरनेट और सोशल  नेटवर्किंग साइट्स से पूरी हो गई , जो लगभग सभी की पहुँच में है । खैर , इसके  लिए  Technology को दोष देना बिलकुल गलत है । Science और Technology तो लोगों की भलाई के लिए ही विकसित किये जाते हैं परंतु ' अति सर्वत्र वर्जयेत ' । हम इन चीज़ों का गलत और अधिक use करके अपना ही नुकसान कर बैठते हैं । 

 अतः बालमन को टीवी व इन्टरनेट के दुष्प्रभावों से बचाना होगा क्योंकि इन्हीं वस्तुओं का प्रयोग हम ज्ञान बढ़ने के लिए भी करते हैं और हमेशा इन पर नज़र बनाये रख पाना संभव नहीं है , इसलिए बच्चों के मन में ही अच्छे और बुरे का भेद बताना होगा और यह कार्य संस्कृति ही करेगी ; निषेधात्मक रूप से व्यक्ति को सुधारना कठिन होता है क्योंकि मन का स्वाभाव वही करना है जिसके लिए मना किया जाए । लेकिन यदि हमें अपने धर्म , संस्कृति और मूल्यों पर निष्ठा है तो  सही कार्य स्वयमेव हो जाएंगे ।

 माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार ही बच्चों यानि भावी युवाओं को , जो देश का भविष्य रचने वाले हैं , दिशा दे सकते हैं । आज के समय में बच्चों को सही राह दिखाने का भार स्कूल और शिक्षकों पर भी है । संयम , शील और सदाचार से युक्त शिक्षा ही कल्याण करने वाली है । नए ज़माने की स्कूल या कॉलेज लाइफ ( जैसा कि टीवी/फ़िल्म सिखा रहे हैं ) से भगवान ही हमारे मासूम विद्यार्थियों को बचाये । हाँलाकि अब धीरे-धीरे हम सब जागरूक हो रहे हैं अपनी संस्कृति की रक्षा के प्रति । ।