कैसे दूर करें निराशा और रहें हमेशा खुश

Friends , जीवन संघर्षों और कष्टों से भरा होता है । इसमें केवल सुख और आनंद नहीं है बल्कि दुख और निराशा भी है । यहाँ कभी-कभी हम सोच न सकें , ऐसी चीजें भी होती हैं और जिंदगी पूरी तरह से हाथ से फिसलती हुई प्रतीत होती है । कई चीजें तो हमारे नियंत्रण में होती ही नहीं हैं जैसे हम अपने माता-पिता और जन्म के समय या परिस्थिति को नहीं चुन सकते , अपने परिवार और माहौल का चुनाव नहीं कर सकते.....तो जो हुआ उसे स्वीकारने में ही भलाई है , इसमें क्या कर सकते हैं ।

लेकिन अब हम यहाँ से क्या कर सकते हैं - रोएँ और पछताएँ अपनी किस्मत पर या आगे बढ़ें ? यह वह चुनाव है , जो हमें करना है । कभी-कभी हम अपनी जिंदगी के Dark side को , इसकी कमीओं को देखने में इतने व्यस्त और आदी हो जाते हैं कि इसके Brighter side और पूर्णताओं को देख ही नहीं पाते ।

एक सामान्य मौसम में , किसी झील में कई नावें चल रही हैं , सभी अलग-अलग दिशाओं की ओर जा रही हैं । कैसे ? जबकि हवा तो एक ही दिशा में बह रही है । अंतर किस चीज का पड़ रहा है ? यह उस पर निर्भर करता है जो नाव चला रहा है और जो दिशा नाविक ने चुनी है । यही हमारी जिंदगी में भी होता है । हम हवा की दिशा निर्धारित नहीं कर सकते लेकिन नाव को किस तरफ ले जाना है , ये जरूर निश्चित कर सकते हैं ।
हम अपना बर्ताव हमेशा चुन सकते हैं भले ही अपनी जीवन की परिस्थितियों को न चुन पाएँ । चुनाव हमारा है , हम चाहें तो एक विजेता की तरह जिएँ या तो एक हारे हुए व्यक्ति की तरह । इंद्रधनुष बनने के लिए धूप और बारिश दोनो की जरूरत होती है , हमारा जीवन इससे अलग नहीं है । इसमें भी अच्छा-बुरा , सुख-दुख , अँधेरे-उजले सारे पक्ष होते हैं । हम अपने जीवन की परिस्थितियों को हमेशा नियंत्रित नहीं कर सकते परन्तु उन परिस्थितियों से कैसे Deal करना है ये जरूर नियंत्रित कर सकते हैं ।

Richard Blechnyden , भारतीय चाय को 1904 के St. Louis World fair में प्रमोट करना चाहते थे , बहुत गर्म होने की वजह से कोई उनकी चाय का sample नहीं ले रहा था । Blechnyden ने देखा कि दूसरी ठंडी drinks काफी अच्छा business कर रही हैं तो उन्होंने अपनी चाय को भी ठंडा पेय बनाने का सोचा , उसमें बर्फ-चीनी मिलाई और बेचा । उनका ये आइडिया लोगों को बहुत पसंद आया , तब दुनिया का ठंडी चाय से परिचय हुआ । जब चीजें गलत दिशा में हो रही हों , जैसा कि कभी-कभी होता है । तब हम उसके अनुसार बर्ताव करें बजाय निराश होने के क्योंकि मनुष्य एक बीज की तरह नहीं है जिसके पास कोई चुनाव नहीं होता क्योंकि एक बीज नहीं चुन सकता कि उसे वृक्ष बनना है या किसी चिड़िया का दाना लेकिन मनुष्य के पास अवश्य choices होती हैं ।

- ( लेख का यह भाग , पुस्तक YOU CAN WIN से लिया गया है जिसके Writer - SHIV KHERA जी हैं । )

« क्या करें जब जिंदगी हाथ से छूटती दिखे - ( WHAT TO DO WHEN THINGS GO WRONG IN OUR LIFE .) »
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अर्थात् जब हमारी हिम्मत जवाब देने लगे , कष्टों से संघर्ष करते-करते मन निराश हो जाए और हमें ऐसा लगने लगे कि अब बस जिंदगी में और कुछ नहीं हो सकता । असफलता , निराशा और दुख जब हम पर हावी होने लगें ।
        मैं आपको यहाँ कोई ज्योतिष वगैरह के कोई उपाय नहीं बताने वाली हूँ । क्योंकि यह मन का विषय है और मन का स्वभाव बड़ा अस्थिर होता है , कभी-कभी जो मन बड़ी-से-बड़ी परेशानी में धैर्य नहीं खोता वही मन छोटी-सी मुश्किल में ही टूटने लगता है । आखिरकार , मनुष्य एक मशीन तो नहीं है ! जिसका केवल Fuel के रूप में Food से काम चल जाएगा , मनुष्य को शारीरिक तृप्ति के साथ-साथ मानसिक शांति भी चाहिए , संतुष्टि और आत्मविश्वास की भावना चाहिए ।

(1) प्रेरणा ढूँढ़ें - :

ऐसी स्थिति में प्रेरणा अर्थात् Motivation का बड़ा महत्त्व होता है , पता नहीं कौन-सी बात आपको हिम्मत दे जाए इसलिए जब भी मन में निराशा के भाव आएँ सर्वप्रथम आप Motivation खोजिए , अपने आपको कम मत आँकिए और आत्महीनता के भाव मत रखिए ।

(2) धैर्य रखें और विश्वास करें - :

विश्वास कीजिए कि ईश्वर ने हम सभी को कोई न कोई प्रतिभा जरूर दी है , जरूरत है तो इसे ढ़ूढ़ने की , निखारने की और सीखने की । अपने लिए नहीं तो दूसरों के लिए , अपने परिवार के लिए और देश के लिए लेकिन कुछ नया शुरू करने का रिश्क और साहस तो जुटाना ही होगा , साथ ही किसी भी काम की पूर्ण होने के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी होता है क्योंकि अधिकतर सफलता के बहुत करीब पहुँचने पर भी हम हार मानकर कोशिश करना छोड़ देते हैं
, इसलिए जब आप किसी काम से संबंधित निर्णय के लिए परेशान हों तो अन्य लोगों के जीवन से प्रेरणा लें जैसे - अब्दुल कलाम , स्टीव जाॅब्स आदि । मैंने कहीं पढ़ा है -
" असफल लोग दुनिया के कारण अपने फैसले बदल लेते हैं लेकिन सफल लोग अपने फैसलों से दुनिया को बदल देते हैं " ।

पढ़िए - " सफलता - एक कदम आगे "

(3) अपनी इच्छाएँ व अपेक्षाएँ कम रखें - :

कहते हैं न - " संतोषं परम सुखं " । जीवन पर जितना कम भार डालेंगे उतना ही अच्छा होगा । हम इतनी भाग-दौड़ क्यों करते हैं यही सोचकर कि ये काम हो जाए , वो चीज खरीद लूँ वगैरह-वगैरह । जिसके कारण दबाव और बढ़ता है । ठीक है , जरूरतें अपनी जगह हैं लेकिन मुझे लगता है कि कम समय में ज्यादा पाने की लालच में बहुत सारे काम एक साथ करना भी निराशा और चिंता की बड़ी वजह है।

(4) ज्यादा मोह(Attachment)मत करें - :

मन लगाना , मोह करना या आसक्ति रखना ,  किसी व्यक्ति या वस्तु से हमेशा दुख का कारण बनता है । क्योंकि हर चीज कभी न कभी बेकार तो होगी ही और इंसान के स्वभाव का भरोसा अधिकतर नहीं किया जा सकता ,
अंततः कहने का अर्थ यही है कि अपनी खुशियों का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखें यदि उसे हमने अपनी चीजों जैसे - गाड़ी ,फोन आदि से जोड़ रखा है तो उनके बिगड़ने पर हम भी बिगड़ेंगे और जिस व्यक्ति से हमने अपेक्षाएँ कर रखी हैं उसका व्यवहार भी हमारी मनः स्थिति पर समय-समय पर  प्रभाव डालता रहेगा ।
अतः बिना स्वार्थी बने और सावधानी रखते हुए हम अपनी खुशियाँ , अपने अंदर खोंजें ।

(5) जानिए वास्तव में,सुख-दुख हैं क्या ?-:

"सुख एक आंतरिक अवस्था है , इसे बाहर नहीं खोजा जा सकता । जिस व्यक्ति के विचारों और कार्यों में समन्वय होता है वही सुखी रहता है ।"  - पं. जवाहर लाल नेहरू
अर्थात् जो व्यक्ति अपने कार्यों से संतुष्ट है वह सुखी है । हाँ , गरीबी मनुष्य को बहुत ही कष्टदायक तरीके से दुखी करती है लेकिन जरूरी नहीं कि पैसा ही सब सुख दे सके ।

खुशी या आनंद , सुख का क्षणिक प्राकट्य है । लेकिन सुख तो वास्तव में वह है जो स्थायी हो , हमेशा के लिए हो । अवश्य वह बाहर नहीं मिल सकता । सुख और आनंद हमारे भीतर है , नहीं तो गहरी नींद में इतना सुकून क्यों मिलता । खैर , इस बात से छोटा-सा का एक संवाद याद आता है -

वासंती वायु का एक झोंका आया और मेरे तन-मन को एक शीतल सुगंध से भरकर चला गया । मैं उसके पीछे यह कहते हुए भागा कि - ' ऐ शीतल समीर ! मुझे अपने साथ ले लो , मुझे अपने जैसा बना दो ' । तभी वायु का एक गर्म झोंका आया और मुझे झुलसाता तथा ये कहता हुआ निकल गया कि ' तुम मूर्ख हो , मैं युगों-युगों से इसके पीछे इसकी शीतलता और सुगंध को प्राप्त करने के लिए भाग रहा हूँ किंतु अब तक सफल न हो सका और न ही सुगंधित ' ।
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप फिर शीतल समीर की प्रतीक्षा करने लगा । वह आया , मैंने फिर याचना की । उसने बाँसों के एक झुरमुट में प्रवेश करके कहा , ' ऐ मनुष्य !  याचना और अनुसरण से कुछ नहीं मिलता , मेरी ही तरह शीतलता और सुगंध तुम्हारे अंदर भी भरी है , प्रयत्न करो , तुम भी शीतल और सुगंधित हो जाओगे ।

एक आध्यात्मिक व्यक्ति होने के कारण , मैं जीवन के प्रत्येक पक्ष को आध्यात्मिक दृष्टि से देखना जरूरी समझती हूँ । इसीलिए निष्कर्ष रूप में मेरा मानना यही है कि - "भगवान पर भरोसा रखना और उनकी इच्छा के प्रति समर्पित रहना ही हमेशा सुखी और शांतचित्त रहने का एकमात्र उपाय है । "
कई बार क्या होता है , हम मानने लगते हैं कि जिंदगी हमारे Plans के अनुसार चलेगी लेकिन यह जरूरी नहीं होता इसलिए - "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनम् अर्थात् कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है , उसके फल पर कभी नहीं ।" के मंत्र को अपनाइए ; इससे अपने काम करने में आपको आसानी होगी और कुछ इच्छित न होने पर दुख भी नहीं होगा । जैसा कि गीता का ज्ञान कहता है ।

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गीता-सार
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