दोस्तों , छोटी-छोटी चीजों का हमारे जीवन मे बड़ा योगदान होता हैं कहते भी हैं - बूँद-बूँद से घड़ा भरता है । यदि हम अपनी छोटी-छोटी आदतों पर ध्यान दें तो अपना स्वभाव सकारात्मक बना सकते हैं ।
मैंने बचपन मे एक ' संस्कृति ज्ञान ' परीक्षा में भाग लिया था उसी समय मैंने ये सूक्तियाँ पढ़ी थी जो ये बताती हैं कि कैसे हमारी आदतें बनती है , जिससे चरित्र का विकास होता है और चरित्र से भाग्य का निर्माण होता है । तथा दूसरी कविता हमें यह बताती है कि भले ही लोग कहें धन-दौलत से सारी चीजें खरीदी जा सकती हैं लेकिन धन की भी एक सीमा होती है.
(1) 》 ध्यान दें : 》
अपनी भावनाओं पर ध्यान दें , ये ही आपके विचार बन जाएँगे ।
अपने विचारों पर ध्यान दें , ये आपके शब्द बन जाएँगे ।
अपने शब्दों पर ध्यान दें , ये आपके कर्म बन जाएँगे ।
अपने कर्मों पर ध्यान दें , ये आपकी आदतें बन जाएँगे ।
अपनी आदतों पर ध्यान दें , ये आपका चरित्र बन जाएँगी ।
अपने चरित्र पर ध्यान दें , यह आपकी नियति बन जाएगा ।
(2) 》 धन की सीमा : -
धन से दवा मिलती है किन्तु स्वास्थय नहीं ;
धन से भोजन मिलता है किन्तु भूख नहीं ;
धन से बिस्तर प्राप्त कर सकते हैं किन्तु नींद नहीं :
धन से कई साथी मिल जाते हैं किन्तु सच्चे मित्र नहीं ;
धन से एकांत प्राप्त हो सकता है किन्तु शांति नहीं ;
धन से पुस्तक मिल जाती है किन्तु ज्ञान नहीं ;
धन से आभूषण मिल सकते हैं किन्तु रूप नहीं ;
धन से माँ मिल सकती है किन्तु ममता नहीं ;
धन से सुख मिल सकता है किन्तु आनंद नहीं.