The power of determination (True story in hindi ) – By BURT DUBIN
"Lives of great men all remind us
We can make our lives sublime
And departing , leave behind us
Footprints on the sands of Time "
- H. W. Longfellow
"महान् लोगों की जीवनगाथाएँ हमे याद दिलाती है कि हम भी अपने जीवन को श्रेष्ठ व उन्नत बना सकते हैं और इस प्रतिज्ञा से कूच करते हुए समय की रेत पर अपने पदचिन्ह छोड़ सकते हैं ।"
मैंने यह story अपने हाई-स्कूल की text - book में पढ़ी थी ; मै इससे बहुत ज्यादा inspire हुई और इसे पढ़कर मुझे यह विश्वास हो गया , कि इस दुनिया में सब कुछ संभव है , हम अपने आपको जितना आंकते है उससे कहीं ज्यादा कर सकते हैं , ढृढ़ संकल्प से हर चीज हासिल की जा सकती है ।बस हमें अपने अंदर से वो अदम्य साहस ढूढ़ निकालना होगा , जिसके आगे कोई कमी न दिखे , सिर्फ लक्ष्य ही नज़र आए । यह कहानी है Dr. Glenn cunningham की । जो एक महान धावक थे , यह story , Burt Dubin द्वारा लिखी गयी है । यहाँ संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत है ।
★ Glenn Cunningham - Glenn Verniss Cunningham was an American distance runner .
Awards: James E. Sullivan Award
यह Glenn Cunningham के जीवन की सत्यकथा है । वह बचपन में एक अग्नि दुर्घटना में विकलांग हो गए थे ।यह story उनके ढृढ़ निश्चय की शक्ति को प्रमुखता से दिखाती है और बताती है , कि किस तरह उनकी शक्ति ने उन्हे इतनी कठिन परिस्थतियों व चुनौतियों से जूझने तथा उस पर विजय पाने की शक्ति दी ।अंततः वे विश्व के सबसे तेज मील धावक बने ।
" THE POWER OF DETERMINATION "
: GlENN CUNNINGHAM
BY BURT DUBIN
》 एक छोटे-से शहर के एक विधालय भवन (schoolhouse ) को एक पुराने फैशन की बड़ी व गोल सिगड़ी से गर्म रखा जाना था । एक छोटे से 8 वर्षीय बालक ( GLENN CUNNINGHAM) का यह कर्तव्य था कि वह प्रतिदिन शिक्षक व उसकी कक्षा के साथियों के आने से पहले जल्दी school आकर सिगड़ी में आग जला दे व कमरे को गर्म रखे ।
एक सुबह जब सभी लोग school आए तो उन्होने पाया कि schoolhouse आग की लपटों से घिरा था ।उन्होंने उस अचेतन ( semi-conscious ) बालक को जलते विधालय भवन से ,अर्धमृत खींचकर बाहर निकाला , उसके शरीर का आधा नीचे का भाग बुरी तरह से झुलस गया था ,उस पास के hospital ले जाया गया ।
बुरी तरह झुलसे, उस अर्धचेतन बालक ने बिस्तर से doctor को अपनी माँ से धीमी आवाज में बातें करते सुना , वे कह रहे थे कि उसका बेटा निश्चित जीवित ही नहीं रह पाएगा ।
जो कि ठीक भी होगा क्योंकि भयानक आग ने उसके शरीर के निचले भाग को बर्बाद कर दिया है ।
लेकिन वह बहादुर बालक मरना नहीं चाहता था ,उसने निश्चय किया कि वह जीवित रहेगा ।किसी doctor के लिए आश्चर्यजनक रूप से , वह निश्चित ही जीवित रहा । जब मरने का खतरा टल गया , तो उसने दोबारा doctor को माँ से धीमे स्वर में बात करते सुना - चूँकि आग ने शरीर के निचले भाग को नष्ट कर दिया है , इससे बेहतर होता कि वह मर गया होता । वह आजीवन अपंग रहने को अभिशप्त रहेगा तथा अपने नीचे के अवयवों का उपयोग कभी नहीं कर पाएगा ।
एक बार फिर उस बहादुर बालक ने निश्चय किया वह अपंग नहीं रहेगा , वह चलेगा-फिरेगा । किन्तु दुर्भाग्य से उसके कमर के नीचे के हिस्सों में घूमने की शक्ति नहीं रह गयी थी ,उसके पतले पैर लटकते थे किंतु निर्जीव थे ।
आखिरकार उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गयी , बालक की माँ प्रतिदिन उसकी नन्ही टाँगों की मालिश करती , लेकिन कुछ महसूस न होता , कोई नियंत्रण नहीं था ।
तो भी उसका ढृढ़ निश्चय कि वह हमेशा की तरह चलेगा-फिरेगा , बहुत मजबूत था ।
जब वह बिस्तर पर न होता , तो wheelchair में बँधा होता । एक धूपदार दिन , उसकी माँ उसे ताजी हवा दिलाने के लिए बाहर खुली जगह में लेकर गई ; उस दिन,wheelchair में बैठे रहने की बजाय उसने अपने आपको chair से बाहर फेंक दिया । वह घास के पार अपने को खींचने लगा , उसकी टाँगे उसके पीछे घिसट रही थी । उसने अपने घर की सफेद नोंकदार वाली बाड़ तक अपना रास्ता तय किया ।बड़ी कोशिश से उसने अपने आपको बाड़ के ऊपर उठाया ।फिर एक खूँटे से दूसरे खूँटे तक अपने आपको बाड़ के साथ-साथ खींचना शुरू किया ।
उसने निश्चय किया था कि वह चलेगा ।
उसने रोज ऐसा करना जारी रखा जब तक कि वह बाड़ के बाजू में चारों ओर आसानी से चल फिर न सका ।उसे अपने पैरों में जीवन विकसित करने के अलावा कोई इच्छा नही थी ।
अंततः प्रतिदिन की मालिश और उसकी लौह लगन ( iron-persistence ) से उसने खड़े रहने की क्षमता प्राप्त कर ली , फिर रूक-रूक कर चलने की , फिर स्वयं अकेले चलने की और बाद में दौड़ने की क्षमता प्राप्त कर ली ।
वह पहले तो school चलकर जाने लगा , फिर दौड़कर , फिर तो उसे दौड़ने में आनन्द आने लगा ।
फिर college में उसने track में दौड़ने की team में भाग लिया ।
और कुछ दिन बाद
( In February 1934, in New York City's famed Madison Square Garden, this young man who was not expected to survive, who would surely never walk, who could never hope to run – this determined young man, Dr. Glenn Cunningham, ran the mile in four minutes and eight seconds, the world's fastest indoor mile! )
1934 में , वह नवयुवक जिसके जीने की भी संभावना भी नहीं थी ,जो निश्चित ही कभी चलने लायक न रहने वाला था जिसके दौड़ने की तो उम्मीद भी नहीं थी -
वह ढृढ़ निश्चयी युवक , Dr. GLENN CUNNINGHAM ; विश्व के सबसे तेज मील धावक बने ।
यह कहानी बहुत प्रेरणादायक है ,जो यह सिखाती है कि हमें कभी हार नहीं मानना चाहिए .
दोस्तों ! जब आप यह निश्चय करते हैं कि चाहे कुछ भी हो, कितनी भी मेहनत करनी पड़े हमें अपना goal achieve करना है तो यह संकल्प हमें सफल बनाता है। इस संकल्प को निरंतर बनाये रखना पड़ता है।
Aap kaha se hai mam please mam batye 9589030836my wattsap nambar
ReplyDeleteAwesome 👌
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